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चिकित्सा-चन्द्रोदय । १५ दिन तक रख दो। इसको "तायोगद" कहते हैं । और तो क्या, इसके सेवनसे तक्षक साँपका काटा हुआ भी बच जाता है।
नोट-"अगद" ऐसी दवाओंको कहते हैं, जो कितनी ही यथोचित औषधियोंके मेलसे बनाई जाती हैं और जिनमें विष नाश करने की सामर्थ्य होती है। हकीम लोग ऐसी दवाओंको "तिरयाक" कहते हैं ।
___ महा अगद। निशोथ, इन्द्रायण, मुलेठी, हल्दी, दारुहल्दी, मञ्जिष्टवर्गकी सब दवाएँ, सैंधानोन, विरिया संचरनोन, विड़नोन, समुद्र नोन, काला नोन, सोंठ, मिर्च और पीपर-इन सब दवाओंको एकत्र पीसकर
और "शहद में मिलाकर, गायके सींगमें भर दो और ऊपरसे गायके सींगका ही ढक्कन लगाकर बन्द कर दो। १५ दिन तक इसे न छेड़ो । इसके बाद काममें लाओ । इसे "महाऽगद" कहते हैं । इस दवाको घी, दूध या शहद प्रभृतिमें मिलाकर पिलाने, आँजने, काटे हुए स्थानपर लगाने और नस्य देनेसे अत्यन्त उग्रवीर्य सोका विष, दुर्निवार विष और सब तरहके विष नष्ट हो जाते हैं । यही बड़ी उत्तम दवा है। गृहस्थ और वैद्य सभीको इसे बनाकर रखना चाहिये क्योंकि समयपर यह प्राण-रक्षा करती है। ____ नोट-बंगसेन, चक्रदत्त और वृन्द प्रभूति कितने ही प्राचार्यों ने इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। प्राचीन-कालके वैद्य ऐसी-ऐसी दवाएँ तैयार रखते थे और उन्हींके बलसे धन और यश उपार्जन करते थे।
दशाङ्ग धूप। बेलके फूल, बेलकी छाल, बालछड़, फूलप्रियंगू, नागकेशर, सिरस, तगर, कूट, हरताल और मैनसिल--इन सब दवाओंको बराबर-बराबर लेकर, सिलपर रख, पानीके साथ खूब महीन पीसो और साँपके काटे हुए आदमीके शरीरपर मलो। इसके लगाने या
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