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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ चिकित्सा-चन्द्रोदय । (२) “वैद्य सर्वस्व"में लिखा है, मेषकी संक्रान्तिमें, मसूरकी दाल और नीमके पत्ते मिलाकर खानेसे एक वर्ष तक विषका भय नहीं होता। नोट -दूसरे ग्रन्थों में लिखा है, मेषकी संक्रान्तिके प्रारम्भमें, एक मसूरका दाना और दो नीमके पत्ते खाने से एक वर्ष तक विषका भय नहीं होता। (३) हर दिन, सवेरे ही सदा-सर्वदा कड़वे नीमके पत्ते चबानेवालेको साँपके विषका भय नहीं रहता। (४) “वैद्यरत्नमें लिखा है, जिस समय वृष राशिके सूर्य हों, उस समय सिरसका एक बीज खानेसे मनुष्य गरुड़के समान हो जाता है, अतः सर्प उसके पास भी नहीं आते- काटना तो दूरकी बात है। ___ (५) बंगसेनमें लिखा है, आषाढ़ के महीने के शुभ दिन और शुभ नक्षत्रमें, सफेद पुनर्नवा या विषखपरेकी जड़, चाँवलोंके पानी में पीसकर, पीनेसे साँपोंका भय नहीं रहता। नोट-चक्रदत्तने पुष्य नक्षत्र में इसके पीनेकी राय दी है। (६) "इलाजुलगुर्वा" में लिखा है- बारहसिंगेका सींग, बकरीका खुर और अकरकरा,--इन तीनोंको मिलाकर, धूनी देनेसे साँप भाग जाते हैं। (७) राई और नौसादर मिलाकर घरमें डाल देनेसे साँप घरको छोड़कर भाग जाता है और फिर कभी नहीं आता। (८) बारहसिंगेका सींग लटका रखनेसे सर्प प्रभृति ज़हरीले जानवर नहीं काटते । (६) गोरखरके सींग, बकरीके खुर, सौसनकी जड़, अकरकराकी जड़ और धनिया--इन चीजोंसे साँप डरता है। खरलमें डाल, खरल कर लो और शोशीमें भरकर रख दो । इसमें से १ माशे रस निकालकर, पानोंके रसके साथ नित्य खाश्रो। इस तरह एक वर्ष तक इसके सेवन करनेसे स्थावर और जंगम विषका भय नहीं रहेगा। इसके सिवा, इस रसका खानेवाला अनेकों मदमाती नारियोंका मद भञ्जन कर सकेगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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