________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सर्प-विषसे बचानेवाले उपाय ।
(१) एक साल तक, विधि-सहित “चन्द्रोदय रस" सेवन करनेसे मनुष्यपर स्थावर और जङ्गम- दोनों प्रकारके विषोंका असर नहीं होता। आयुर्वेद में लिखा है:
स्थावरं जगम विषं विषमं विषवारिवा ।
न विकाराय भवति सिद्धचन्द्रस्यवत्सरात् ॥ स्थावर और जंगम विष तथा जलका विष एक वर्ष तक "चन्द्रोदय रस" सेवन करनेसे नहीं व्यापते । सोने के वर्क ४ तोले | *(१) इन तीनोंको खरल में डालकर खूब घोटो, जब शटपारा ३० तोले निश्चन्द्र कजली हो जाय, (२) नरम कपासके फूलोंका शुद्ध गंधक ६४ तोले
रस डाल-डालकर घोटो । जब यह घुटाई भी हो जाय, तब
_ (३) घीग्वारका रस डाल-डालकर घोटो । जब यह घुटाई भी हो जाय, मसालेको (४) सुखा लो। जब सूख जाय, उसे एक बड़ी प्रातिशी शीशीमें भरकर, शीशीपर सात कपड़-मिट्टी कर दो और शीशीको सुखा लो। (५) सूखी हुई शीशीको बालुकायन्त्रमें रखकर, बालुकायन्त्रको चूल्हेपर चढ़ा दो और नीचेसे मन्दी-मन्दी आग लगने दो । पीछे, उस आगको और तेज़ कर दो। शेषमें, श्रागको खूब तेज़ कर दो। क्रमसे मन्द, मध्यम और तेज़ आग
लगातार २४ पहर या ७२ घण्टों तक लगनी चाहिये। (६) जब शीशीके | मुंहसे धुआँ निकल जाय, तब शीशीके मुंहपर एक ईटका टुकड़ा रखकर, मुंह
बन्द कर दो; पर नीवे आग लगती रहे। __जब चन्द्रोदय सिद्ध हो जायगा, तब शीशीकी नली काली स्याह हो जायगी। यही सिद्ध-असिद्ध "चन्द्रोदय" की पहचान है ।
सिद्ध चन्द्रोदयका रंग नये पत्ते की ललाईके समान लाल होता है । ऐसा चन्द्रोदय सर्व रोग-नाशक होता है।
सेवन-विधि-चन्द्रोदय ४ तोले, भीमसेनी कपूर १६ तोले, और जायफल, कालीमिर्च, लैंौग तीनों मिलाकर १६ तोले तथा कस्तूरी ४ माशे--इन सबको
For Private and Personal Use Only