________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२१२
चिकित्सा-चन्द्रोदय । . (१५) इसकी भी खोज करो, कि नरने काटा है या मादीनने अथवा नपुंसक या गर्भवती, प्रसूता आदि नागिनोंने । इससे विषकी मारकता आदि जान सकोगे। - (१६) अच्छी तरह देख लो, विषका कौनसा वेग है। हालत देखनेसे वेगको जान सकोगे।
(१७ ) याद रखो, अगर दर्बीकर सर्प काटता है, तो चौथे वेगमें वमन कराते हैं । अगर मण्डली और राजिल काटते हैं, तो दूसरे वेगमें ही वमन कराते हैं।
(१८) गर्भवती, बालक, बूढ़े और गर्म मिजाजवालेको साँप काटे तो फस्द न खोलो; किन्तु शीतल उपचार करो। . (१६) अगर जाडेका मौसम हो, रोगीको जाड़ा लगता हो, राजिल सर्पने काटा हो, बेहोशी और नशा-सा हो, तो तेज़ दवा देकर क्रय कराओ।
(२०) अगर प्यास, दाह, गरमी और बेहोशी आदि हों, तो शीतल उपचार करो- गरम नहीं ।
(२१) अगर रोगी भूखा-भूखा चिल्लाता हो और दीकर या काले साँपने काटा हो तथा वायुके उपद्रव हों, तो घी और शहद, दही या माठा दो। . . . (२२) जिसके शरीरमें दर्द हो और शरीरका रङ्ग बिगड़ गया हो उसकी फस्द खोल दो।
(२३) जिसके पेटमें जलन, पीड़ा और अफारा हो, मल-मूत्र रुके हों और पित्तके उपद्रव हों, उसे जुलाब दो। - (२४) जिसका सिर भारी हो, ठोड़ी और जाबड़े जकड़ गये हों तथा कण्ठ रुका हो, उसे नस्य दो। अगर रोगी बेहोश हो, आँखें फटीसी हो गई हों और गर्दन टूट गई हो, तो प्रधमन नस्य दो।
(२५) आराम हो जानेपर "उत्तर क्रिया" अवश्य करो।
For Private and Personal Use Only