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सर्प-विषसे बचानेवाले उपाय । (१०) साँपकी राहमें अगर राई डाल दी जाय, तो साँप उस राहसे नहीं निकलता । राई और नौसादर साँपके बिल या बाँबीमें डाल देनेसे साँप उन्हें छोड़ भागता है। ____ नोट-निराहार रहनेवाले मनुष्यका थूक अगर साँपके मुंहमें डाल दिया जाय, तो सौप मर जायगा । अगर उस आदमीके मुंहमें नौसादर हो, तो उसके थूकसे साँप और भी जल्दो मर जायगा । राई भी सर्पको मार डालती है ।
(११) वृन्द वैद्यने लिखा है:-आषाढ़ के महीने के शुभ दिन और शुभ मुहूर्तमें, सिरसकी जड़को चाँवलोंके पानीके साथ पीनेवालेको सर्पका भय कहाँ ? अर्थात् साँपका डर नहीं रहता। यदि ऐसे आदमीको कोई साँप दर्प या मोहसे काट भी खाता है, तो उसी समय उसका विष, शिवजीकी आज्ञानुसार, सिरसे मूल स्थानपर जा पहुँचता है; अतः जिसे वह काटता है, उसकी कोई हानि नहीं होती । चक्रदत्त लिखते हैं, कि वह सर्प उसी स्थानपर मर जाता है। लिखा है:
मूलं तण्डुलवारिणा पिबति यः प्रत्यंगिरासंभवम् ।। उद्धृत्याऽऽकलितं सुयोगदिवसे तस्याऽहिभीतिः कुतः ? . नोट--सिरसकी जड़को भाषाढ़ मासके शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में ही उखाड़कर लाना चाहिये, पहलेसे लाकर रखी हुई जड़ कामकी नहीं । हाँ, चक्रदत्तने लिखा है कि, इस जड़को बिना पीसे चाँवलोंके पानीके साथ पीना चाहिये ।
(१२) मसूर और नीमके पत्तोंके साथ “सिरसकी जड़"को पीसकर, वैशाखके महीने में पीनेवालेको, एक वर्ष तक विष और विषमज्वरका भय नहीं रहता। चक्रदत्तने लिखा है:
मसूरं निम्बपत्राभ्यां खादेन्मेषगते रखौं ।
अब्दमेकं न भीतिः स्यद्विषार्तस्य न संशयः ॥ मसूरको नीमके पत्तों के साथ जो आदमी मेषके सूर्यमें खाता है, उसे एक साल तक साँपोंसे भय नहीं होता, इसमें संशय नहीं।
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