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सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने-योग्य बातें । २०६ सातवें वेगमें, साँपके काटे हुएके सिरपर 'काकपद" करते हैं। उसके सिरका चमड़ा छीलकर कव्वेका-सा पञ्जा बनाते हैं। अगर उस जगह खून नहीं निकलता, तो समझते हैं, कि रोगी मर गया। अगर खून निकलता है, तो समझते हैं, कि रोगी जीता है-मरा नहीं।।
(२०) अगर साँप किसीको सामनेसे आकर काटता है, तब तो रोगी कहता है, कि मुझे साँपने काटा है । परन्तु कितनी ही दफा साँप नींदमें सोते हुएको या अँधेरेमें काटकर चल देता है; तब पता नहीं लगता, कि किस जानवरने काटा है । ऐसा मौका पड़नेपर, आप दंशस्थानको देखें; उसीसे आपको पता लगेगा। याद रखो, अगर जहरीला सर्प काटता है, तो उसकी दो दाढ़े लगती हैं। अगर काटी हुई जगहपर इक? दो छेद दीखें, तो समझो कि साँपने दाँत लगाये, पर दाँत ठीक बैठे नहीं और वह ज़रूममें जहर छोड़ नहीं सका । इस अवस्थामें, यथोचित मामूली उपाय करने चाहिए। .
अगर ज़हरीला साँप काटता है और घावमें विष छोड़ जाता है, तो रोगीके शरीरमें झनझनाहट होती और वह बढ़ती चली जाती है, चक्कर आते हैं, शरीर काँपता है, बेचैनी होती है और पैर कमजोर हो जाते हैं । पर जब विष और आगे बढ़ता है, तब साँस लेने में कष्ट होता है, गहरा साँस नहीं लिया जाता, नाड़ी जल्दी-जल्दी चलती है; पर ठहर-ठहरकर । बोली बन्द होने लगती है, जीभ बाहर निकल आती है, मैं हमें झाग आते हैं, हाथ-पैर तन जाते हैं, शरीर शीतल हो जाता है और पसीने बहुत आते हैं । अन्तमें रोगी बेहोश होकर मर जाता है। मतलब यह है, कि अगर अनजानमें, सोते हुए या अँधेरेमें साँप काटे, तो आप दंश-स्थान और लक्षणोंसे जान सकते हैं, कि साँपने काटा या और किसी जीवने ।
(२१) अगर आप साँपके काटेकी चिकित्सा करो, तो दवा सेवन कराने, बन्ध बाँधने, फस्द खोलने, लेप लगाने प्रभृति क्रियाओंपर विश्वास और भरोसा रखो, पर मन्त्रोंपर विश्वास न करो। अगर
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