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चिकित्सा-चन्द्रोदय । मन्त्र जाननेवाले आवें, बन्ध खोलें और दवा देना बन्द करें, तो भूलकर भी उनकी बातोंमें मत आओ। कई दफा, बन्ध बाँधनेसे साँपके काटे हुए आदमी आराम होते-होते, दुष्टोंके बन्ध खुला देनेसे, मर गये और मन्त्रज्ञ महात्मा अपना-सा मुंह लेकर चलते बने । __ आजकल मन्त्र-सिद्धि करनेवाले कहाँ मिल सकते हैं, जब कि सुश्रुतके ज़मानेमें ही उनका अभाव-सा था । सुश्रुतमें लिखा है:
मंत्रास्तु विधिना प्रोक्ता हीना वा स्वरवर्णतः ।
यस्मान सिद्धिमायान्ति तस्माद्योज्योऽगदक्रमः ॥ मन्त्र अगर विधिके बिना उच्चारण किये जाते हैं तथा स्वर और वर्णसे हीन होते हैं, तो सिद्ध नहीं होते; अतः साँपके काटेकी दवा ही करना चाहिये।
जब भगवान् धन्वन्तरि ही सुश्रुतसे ऐसा कहते हैं, तब क्या कहा जाय ? उस प्राचीन काल में ही जब सच्चे मन्त्रज्ञ नहीं मिलते थे, तब अब तो मिल ही कहाँ सकते हैं ? मन्त्र सिद्ध करनेवालोंको स्त्री-सङ्ग, मांस और मद्य आदि त्यागने होते हैं, जिताहारी और पवित्र होकर कुशासनपर सोना पड़ता है एवं गन्ध, माला और बलिदानसे मन्त्र सिद्ध करके देव-पूजन करना होता है। कहिये, इस समय कौन इतने कर्म करेगा?
नवनीत या निचोड़। ( २२ ) सर्प-विष-चिकित्सामें नीचेकी बातोंको कभी मत भूलोः--
(१) मण्डली सर्पके डसे हुए स्थान को आगसे मत जलाओ। ऐसा करनेसे विषका प्रभाव और बढ़ेगा।
(२) खून निकालनेके बाद, जो उत्तम खून बच रहे, उसे शीतल सेकोंसे रोको।
(३) सर्पके काटेके आराम हो जानेपर भी, डसे हुए स्थानको खुरचकर, विष-नाशक लेप करो; क्योंकि अगर जरा-सा भी विष शेष रह जायगा, तो फिर वेग होंगे।
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