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सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। २०७ वैद्य-रोगीकी प्रकृति कैसी है ? दूत-पित्त-प्रकृति । वैद्य--आजकल कौन-सा महीना है ? दूत-महाराज ! वैशाख है। वैद्य--सर्पदंश कैसा है ? दृत--सर्पित । वैद्य-किस समय काटा ? दूत-रातको १० बजे। वैद्य--क्यों काटा ? दूत-पैरसे दबकर। वैद्य--किस जगह साँप मिला ? दूत--अमुक गाँवके बाहर, पीपलके नीचे । वैद्य - रोगीका क्या हाल है ?
दूत-बड़ी प्यास है, जला-जला पुकारता है और शीतल पदार्थ माँगता है।
वैद्य-उसके मल-मूत्र, नेत्र और चमड़ेका रङ्ग अब कैसा है ?
दूत--सब पीले हो गये हैं । ज्वर भी चढ़ आया है। अब तो होश नहीं है । पसीनोंसे तर हो रहा है।
वैद्य--भाई ! हमें फुरसत नहीं है और किसीको ले जाओ। ___ दूत--क्यों महाराज ! क्या रोगी नही बचेगा ? अगर नहीं बचेगा तो क्यों ?
वैद्य-अरे भाई ! इन बातोंमें क्या लोगे ? जाओ, देर मत करो। किसी औरको ले जाओ।
दूत--नहीं महाराज ! मैं वैद्य तो नहीं हूँ; तो भी चिकित्सा-ग्रन्थ देखा करता हूँ । कृपया मुझे बताइये कि, वह क्यों न बचेगा ?
वैद्य--भाई ! उसके न बचनेके बहुत कारण हैं, (१) उसे बूढ़े मण्डली साँपने काटा है, और बूढ़े मण्डली साँपका काटा
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