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चिकित्सा-चन्द्रोदय। देश है। इसमें स्वभावसे ही वात-कफका कोप रहता है, यह भी एक कठिनाई हमको मालूम हो जायगी । आप ही गौर कीजिये, इतनी बातोंको समझे बिना वैद्य कैसे उत्तम इलाज कर सकेगा ?
उदाहरण । अगर हमसे कोई आकर पूछे कि, कलकत्तेमें, इस सावनके महीनेमें, एक वात-प्रकृतिके आदमीको जवान दीकर या काले साँपने काटा है, वह बचेगा कि नहीं; तो हम यह समझकर कि, सर्पकी प्रकृति वातप्रधान है, रोगी भी वात प्रकृति है, ऋतु भी वात-कोपकी है और देश भी वैसा ही है, कह देंगे कि, भाई भगवान् ही रक्षक है, बचना असम्भव है । पर हमें थोड़ा सन्देह रहेगा, क्योंकि यह नहीं मालूम हुआ कि, सर्प-दंश कैसा है ? सर्पित है, रदित है या निर्विष अथवा क्यों काटा है ? दबकर, क्रोधमें भरकर अथवा और किसी वजहसे ? अगर इन सवालोंके जवाब भी ये मिलें, कि सर्प-दंश सर्पित है-पूरी दाढ़ें बैठी हैं और पैर पड़ जानेसे क्रोधमें भरकर काटा है, तब तो हमें रोगीके मरनेमें जो ज़रा-सा सन्देह था, वह भी न रहेगा।
प्रश्नोत्तरके रूपमें दूसरा उदाहरण । अगर कोई शख्स आकर हमसे कहे, कि वैद्यजी ! जल्दी चलिये, एक आदमीको साँपने काटा है । हम उससे चन्द सवाल करेंगे और वह उनके जवाब देगा। पीछे हम नतीजा बतायेंगे ।
वैद्य - कैसे सर्पने काटा है ? दूत--मण्डली साँपने। वैद्य--साँप जवान था कि बूढ़ा ? दूत-साँप अधेड़ या बूढ़ा-सा था।
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