________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने-योग्य बातें । २०५ (च) सर्पने दिन-रातके किस भागमें काटा ? जैसे,- सवेरे, शामको, पहली रातको या पिछली रातको । (छ) सर्पदंश कैसा है ? जैसे,- सर्पित, रदित इत्यादि ।
___ इन बातोंके जाननेसे लाभ । इन बातोंके जान जानेसे ही हम अच्छी तरह चिकित्सा कर सकेंगे। अगर हमें मालूम हो कि, द:करने काटा है, तो हम समझ जायेंगे कि, इस साँपका विष वात-प्रधान होता है। इसके सिवाय, इसका काटा आदमी तत्काल ही मर जाता है । चूँ कि द:करने काटा है, अतः हमें वातनाशक चिकित्सा करनी होगी।
इतना ही नहीं, फिर हमें विचारना होगा कि, हमारे रोगीके साथ सर्प-विषकी प्रकृति-तुल्यता तो नहीं है; यानी सर्प-विष वातप्रधान है और रोगी भी वातप्रधान प्रकृतिका तो नहीं है । अगर विष और रोगी दोनोंकी प्रकृति एक मिल जायँगी, तब तो हमको कठिनाई मालूम होगी। अगर विष और रोगीकी प्रकृति जुदी-जुदी होगी, तो हमको उतनी कठिनाई न मालूम होगी।
फिर हमको यह देखना होगा कि, आजकल ऋतु कौनसी है। किस दोषके कोपका समय है। अगर हमारे रोगीको दीकर साँपने वर्षा-कालमें काटा होगा, तो ऋतु-तुल्यता हो जायगी । क्योंकि दर्वीकर साँपका विष वातप्रधान होता ही है और वर्षा-ऋतु भी वात-कोपकारक होती है । इस दशामें हम कठिनाईको समझ सकेंगे। वर्षाकालमें या बादल होनेपर विष स्वभावसे ही कुपित होते हैं, इससे कठिनाई और भी बढ़ी दीखेगी।
फिर हमको देखना होगा, यह कौन देश है, इसकी प्रकृति क्या है । अगर हमारे रोगीको वात-प्रधान दर्बीकर सर्पने बङ्गालमें काटा होगा, तो देश-तुल्यता हो जायगी, क्योंकि बङ्गाल देश अनूप
For Private and Personal Use Only