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सर्प विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। २०३ मणि और वीर्यवान विष--इनमेंसे किसी एकको या दो-चारको शरीरपर धारण करनेसे विषकी शान्ति होती है। अतः जो अमीर हों, जिनके पास इनमेंसे कोई-सी चीज़ हो, उन्हें इनके पास रखनेकी सलाह दीजिये। इनको व्यर्थका अमीरी ढकोसला मत समझिये । इनमें विषको हरण करनेकी शक्ति है। 'सुश्रुत'के कल्प-स्थानमें लिखा है, विष-मूषिका और अजरुहामेंसे किसी एकको हाथमें रखनेसे साँप आदि तेज़ ज़हरवाले प्राणियोंका जहर उतर जाता है। अजरुहा शायद निर्विषीको कहते हैं। निर्विषीमें ऐसी सामर्थ्य है, पर वैसी सच्ची निर्विषी आज-कल मिलनी कठिन है । द्रव्योंमें अचिन्त्य गुण और प्रभाव हैं; पर अफसोस है कि, मनुष्य उनको जानता नहीं। न जाननेसे ही उसे सी-ऐसी बातोंपर आश्चर्य या अविश्वास होता है और वह उन्हें झूठी समझता है । एक चिरचिरेको ही लीजिये। इसे रविवारके दिन कानपर बाँधनेसे शीत-ज्वर भाग जाता है। जिन्होंने परीक्षा न की हो, कर देखें; पर विधि-पूर्वक काम करें। बिच्छूके काटे आदमीको आप चिरचिरा दिखाइये और छिपा लीजिये । २-४ बार ऐसा करनेसे बिच्छूका विष उतर जाता है। __(१८) ऊपरके १८ पैरोंमें, हमने साँपके काटेकी “सामान्य चिकित्सा" लिखी है, क्योंकि “विशेष चिकित्सा" उत्तम और शीघ्र फल देनेवाली होनेपर भी, सब किसीसे बन नहीं आती-ज़रा-सी. ग़लतीसे उल्टे लेने के देने पड़ जाते हैं । आगे हम विशेष चिकित्साके सम्बन्धकी चन्द प्रयोजनीय--कामकी बातें लिखते हैं । साँपके काटे हुएका इलाज शुरू करनेसे पहले, वैद्यको बहुत-सी बातोंका विचार करके, खूब समझ-बूझकर, पीछे इलाज शुरू करना चाहिये। जो वैद्य बिना समझे-बूझे इलाज शुरू कर देते हैं, उन्हें कदाचित् कभी सिद्धि-लाभ हो भी जाय, तो भी अधिकांश रोगी उनके हाथोंमें आकर वृथा मरते और उनकी सदा बदनामी होती है । पर जो वैद्य हरेक बातको समझ-बूझकर, पीछे इलाज करते हैं, उन्हें
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