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चिकित्सा-चन्द्रोदय । .. मरे हुए और बेहोश हुएकी पहचान । ____ अनेक बार ऐसा होता है, कि मनुष्य एक-दमसे बेहोश हो जाता है, नाड़ी नहीं चलती और जहरकी तेजीसे साँसका चलना भी बन्द हो जाता है, परन्तु शरीरसे आत्मा नहीं निकलता-जीव भीतर रहा आता है। नादान लोग, ऐसी दशामें उसे मरा हुआ समझकर गाड़ने या जलानेकी तैयारी करने लगते हैं, इससे अनेक बार न मरते हुए भी मर जाते हैं । ऐसी हालतमें, अगर कोई जानकार भाग्यबलसे आ जाता है, तो उसे उचित चिकित्सा करके जिला लेता है। अतः हम सबके जाननेके लिये, मरे हुए और जीते हुएकी परीक्षा-विधि लिखते हैं:--
(१) उजियालेदार मकानमें, बेहोश रोगीकी आँख खोलकर देखो। अगर उसकी आँखकी पुतलीमें, देखनेवालेकी सूरतकी परछाई दीखे या रोगीकी आँखकी पुतलीमें देखनेवालेकी सूरतका प्रतिबिम्ब या अक्स पड़े, तो समझ लो कि रोगी जीता है। इसी तरह अँधेरे मकानमें या रातके समय, चिराग़ जलाकर, उसकी आँखोंके सामने रखो । अगर दीपककी लौकी परछाई उसकी आँखोंमें दीखे, तो समझो कि रोगी जीता है।
(२) अगर बेहोश आदमीकी आँखोंकी पुतलियोंमें चमक हो, तो समझो कि वह जीता है।
(३) एक बहुत ही हल्के बर्तनमें पानी भरकर रोगीकी छातीपर रख दो और उसे ध्यानसे देखो। अगर साँस बाकी होगा या चलता होगा, तो पानी हिलता हुआ मालूम होगा।
(४) धुनी हुई ऊन, जो अत्यन्त नर्म हो, अथवा कबूतरका बहुत ही छोटा और हल्का पंख, रोगीकी नाकके छेदके सामने रक्खो । अगर इन दोनों से कोई भी हिलने लगे, तो समझो कि रोगी जीता है।
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