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सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें। १६१ नोट--यह काम इस तरह करना चाहिये जिससे लोगोंके साँसकी हवा या बाहरी हवासे उन या पंखके हिलनेका वहम न हो ।
(५) पेड़ , चड्ढे, लिंगेन्द्रिय, योनिके छेद और गुदाके भीतर, पीछेको झुकी हुई, दिलकी एक रग आई है । जब तक रोगी जीता रहता है, वह हिलती रहती है। पूरा नाड़ी-परीक्षक इस रगपर अंगुलियाँ रखकर मालूम कर सकता है, कि यह रग हिलती है या नहीं।
नोट-तजुबेकार या जानकार आदमी किसी प्रकारके विषसे मरे हुए और पानी में डूबे हुओंकी, मुर्दा मालूम होनेपर भी, तीन दिन तक राह देखते हैं और सिद्ध यत्न प्राप्त हो जानेपर जीवनकी उम्मीद करते हैं । सकतेकी बीमारीवाला मुर्देके समान हो जाता है, लेकिन बहुतसे जीते रहते हैं और मुर्दै जान पड़ते हैं। उत्तम चिकित्सा होनेसे वे बच जाते हैं । इसीसे हकीम जालीनूस कहता है, कि सकतेवालेको ७२ घण्टे या तीन दिन तक न जलाना और न दफनाना चाहिये ।
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सर्प-विष-चिकित्सामें याद रखने योग्य बातें।
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(१) अगर साँपके काटते ही, आप रोगीके पास पहुँच जाओ, तो साँपके काटे हुए स्थानसे चार अंगुल ऊपर, रेशमी कपड़े, सूत, डोरी या सनकी डोरी आदिसे बन्ध बाँध दो। एक बन्धपर भरोसा मत करो । एक बन्धसे चार अंगुलकी दूरीपर दूसरा और इसी तरह तीसरा बन्ध बाँधो। बन्ध बाँध देनेसे खून उपरको नहीं चढ़ता और आगेकी चिकित्साको समय मिलता है । कहा है
अम्बुवत्सेतुबन्धेन बन्धेन स्तभ्यते विषम् । न वहन्ति शिराश्चास्य विषबन्धाभिपीडिताः ॥
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