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जंगम-विष-चिकित्सा -सोका वर्णन । या सफेदी और भी बढ़ जाती, जड़ता होती और सिर में सूजन चढ़ आती है। - तीसरे वेगमें--वही विष मेदको खराब करता है, जिससे आँखें बन्द सी होती, दाँत अमलाते, पसीने आते, नाक और आँखोंसे पानी आता है।
चौथे वेगमें--विष कोठेमें जाकर, मन्यास्तम्भ और सिरका भारीपन करता है।
पाँचवें वेगमें-बोल बन्द हो जाता और जाड़ेका ज्वर चढ़ आता है। छठे और सातवें वेगोंमें--दीकरोंके विषके-से लक्षण होते हैं ।
पशुओंमें विषवेगके लक्षण । .. पशुओंको सर्प काटता है, तो चार वेग होते हैं । पहले वेगमें पशुका शरीर सूज जाता है । वह दुखित होकर ध्या-ध्या करता अथवा ध्यान-निमग्न हो जाता है। दूसरे वेगमें, मुँ हसे पानी बहता, शरीर काला पड़ जाता और हृदयमें पीड़ा होती है। तीसरे वेगमें, सिरमें दुःख होता है तथा कंठ और गर्दन टूटने लगती हैं । चौथे वेगमें, पशु मूढ़ होकर काँपने लगता और दाँतोंको चबाता हुआ प्राण त्याग देता है। नोट--कोई-कोई पशुओंके तीन ही वेग बताते हैं।
पक्षियोंमें विषवेगके लक्षण । प्रथम वेगमें पक्षी ध्यान-मग्न हो जाता है और फिर मोह या मूर्छाको प्राप्त होता है। दूसरे वेगमें वह बेसुध हो जाता और तीसरे वेगमें मर जाता है। ... नोट--बिल्ली, नौला और मोर प्रभुतिके शरीरों में साँपोंके विषका प्रभाव नहीं होता।
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