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चिकित्सा-चन्द्रोदय । ' सातवें वेगमें-वही विष वीर्यमें जा पहुँचता और सारे शरीरमें रहनेवाली 'व्यान वायु"को कुपित कर देता एवं सूक्ष्म छेदोंसे कफको झिराने लगता है, जिससे कफकी बत्तियाँ-सी बँध जाती हैं, कमर और पीठ टूटने लगती हैं, हिलने-चलनेकी शक्ति नहीं रहती, मुँ हसे पानी
और शरीरसे पसीना बहुत आता और अन्तमें साँसका आना-जाना बन्द हो जाता है।
मण्डली या चकत्तेदार साँपोंके विषके सात वेग । -
मण्डली साँपोंका विष पहले वेगमें खूनको बिगाड़ता है, तब वह खून 'पीला" हो जाता है, जिससे शरीर पीला दीखता और दाह होता है।
दूसरे वेगमें--वही विष मांसको बिगाड़ता है, जिससे शरीरका पीलापन और दाह बढ़ जाते हैं तथा काटी हुई जगहमें सूजन श्रा जाती है। ___ तीसरे वेगमें--वही विष मेदको बिगाड़ता है, जिससे नेत्र मिचने लगते हैं, प्यास बढ़ जाती है, पसीने आते हैं और काटे हुए स्थानपर लेद होता है।
चौथे वेगमें वही विष कोठेमें पहुँचकर ज्वर करता है।
पाँचवें वेगमें--वही विष हड्डियोंमें पहुँचकर, सारे शरीरमें खूब तेज़ जलन करता है।
छठे और सातवें वेगोंमें दीकरोंके विषके समान लक्षण होते हैं। राजिल या गण्डेदार साँपोंके विषके सात वेग।।
राजिल साँपोंका विष पहले वेगमें खूनको बिगाड़ता है। इससे बिगड़ा हुआ खून “पाण्डु' वर्ण या सफेद-सा हो जाता है, जिससे आदमी सफेद-सा दीखने लगता है और रोएँ खड़े हो जाते हैं।
दूसरे वेगमें--यही विष मांसको बिगाड़ता है, जिससे पाण्डुता
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