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जंगम-विष-चिकित्सा--सोका वर्णन । १८७ - नोट-एक और ग्रन्थकार अाठ वेग मानते हैं और प्रत्येक वेगके लक्षण बहुत ही संक्षेपमें लिखते हैं। पाठकोंको उनके जाननेसे भी लाभ ही होगा, इसलिये उन्हें भी लिख देते हैं। - (१) पहले वेगमें सन्ताप, (२) दूसरेमें शरीर काँपना, (३) तीसरेमें दाह या जलन, (४) चौथेमें बेहोश होकर गिर पड़ना, (५) पाँचवेंमें मुंहसे झाग गिरना, (६) छठेमें कन्धे टूटना, (७) सातवेंमें जड़ीभूत होना ये लक्षण होते हैं, और (८) आठवें में मृत्यु हो जाती है।
दीकर या फनदार साँपोंके विषके सात वेग । द:कर साँपोंका विष पहले वेगमें खूनको दूषित करता है, इससे खून बिगड़कर “काला" हो जाता है। खूनके काले होनेसे शरीर काला पड़ जाता है और शरीरमें चींटी-सी चलती जान पड़ती हैं। - दूसरे वेगमें--वही विष मांसको बिगाड़ता है, इससे शरीर और भी जियादा काला हो जाता और सूज जाता है तथा गाँठे हो जाती हैं । __ तीसरे वेगमें--वही विष मेदको खराब करता है, जिससे डसी हुई जगहपर क्लेद, सिरमें भारीपन और पसीना होता है तथा आँखें मिचने लगती हैं।
चौथे वेगमें--वही विष कोठे या पेटमें पहुँचकर कफ-प्रधान दोषों-लेदन, कफ, रस, ओज आदि--को खराब करता है, जिससे तन्द्रा आती, मैं हसे पानी गिरता और जोड़ोंमें दर्द होता है। 'पाँचवें वेगमें--वही विष हड्डियोंमें घुसता और बल तथा शरीरकी अग्निको दृषित करता है, जिससे जोड़ोंमें दर्द, हिचकी और दाह ये उपद्रव होते हैं। .. छठे वेगमें-वही विष मज्जामें घुसता और ग्रहणीको दूषित करता है, जिससे शरीर भारी होता, पतले दस्त लगते, हृदयमें पीड़ा और मूर्छा होती है। ...
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