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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सा-चन्द्रोदय । मेद खराब हो जाती है । उसकी खराबीसे पसीने आने लगते हैं, काटी जगहपर क्लेद-सा होता है और नेत्र मिचे जाते हैं--तन्द्रा घेर लेती है । - चौथा वेग-इस वेगमें विष पेट और फेफड़े प्रभृतिमें पहुँच जाता है । इससे कोठेका कफ खराब हो जाता है, मुंहसे लार या कफ गिरता है और सन्धियाँ टूटती हैं; यानी जोड़ोंमें पीड़ा होती है और घुमेर या चक्कर आते हैं। .. ___नोट--चौथे वेगमें मण्डली सर्पके काटनेसे ज्वर चढ़ पाता है और राजिलके काटनेसे गर्दन अकड़ जाती है । . पाँचवाँ वेग--इस वेगमें विष हड्डियोंमें जा पहुँचता है, इससे शरीर कमजोर होकर गिरा जाता है, खड़े होने और चलने-फिरनेकी सामर्थ्य नहीं रहती और अग्नि भी नष्ट हो जाती है। नोट--अग्नि नष्ट होनेसे-अगर दीकर काटता है, तो शरीर ठण्डा हो जाता है, अगर मण्डली काटता है, तो शरीर निहायत गर्म हो जाता है और अगर राजिल काटता है, तो जाड़ेका बुखार चढ़ता और जीभ बँध जाती है । . छठा वेग--इस वेगमें विष मज्जामें जा पहुँचता है, इससे छठी पित्त-धरा कला, जो अग्निको धारण करती है, निहायत बिगड़ जाती है । ग्रहणीके बिगड़नेसे दस्त बहुत आते हैं । शरीर एकदम भारी-सा हो जाता है, मनुष्य सिर और हाथ-पाँव आदि अंगोंको उठा नहीं सकता । उसके हृदयमें पीड़ा होती और वह बेहोश हो जाता है। . सातवाँ वेग--इस वेगमें विषका प्रभाव सातवीं शुक्रधरा या रेतोधरा कला अथवा वीर्यमें जा पहुंचता है, इससे सारे शरीरमें रहनेवाली व्यान वायु कुपित हो जाती है । उसकी वजहसे मनुष्य कुछ भी करने योग्य नहीं रहता । मुंह और छोटे-छोटे छेदोंसे पानी-सा गिरने लगता है। मुख और गलेमें कफकी गिलौरियाँ-सी बँधने लगती हैं। कमर और पीठकी हड्डीमें जरा भी ताकत नहीं रहती । मुँहसे लार बहती है। सारे शरीरमें, विशेषकर शरीरके ऊपरी हिस्सों में, बहुत ही पसीना आता और साँस रुक जाता है, इससे आदमी बिल्कुल मुर्दा-सा हो जाता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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