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जंगम-विष-चिकित्सा--सोका वर्णन । १८५ (२) इसके बाद विष खूनको बिगाड़कर मांसमें पहुँचता हैयह दूसरा वेग हुआ।
(३) मांसको पार करके विष मेदमें जाता है- यह तीसरा वेग हुआ।
(४) मेदसे विष कोठेमें जाता है--यह चौथा वेग हुआ। (५) कोठेसे विष हड्डियों में जाता है, यह पाँचवाँ वेग हुआ। (६) हड्डियोंसे विष मज्जामें पहुँचता है, यह छठा वेग हुआ। (७) मज्जासे विष वीर्यमें पहुँचता है, यह सातवाँ वेग हुआ।
नोट-सर्पके विषका कौनसा वेग है, इसके जाननेकी चिकित्सकको ज़रूरत होती है, इसलिये वेगोंकी पहचान जानना और याद रखना ज़रूरी है । नीचे हम यही दिखलाते हैं कि, किस वेगमें क्या चिह्न या लक्षण देखने में आते हैं।
सात वेगोंके लक्षण । पहला वेग--साँपके काटते ही, विष खून में मिलकर ऊपरकी तरफ़ चढ़ता है । उस समय शरीरमें चींटी-सी चलती हैं। फिर विष
खूनको खराब करता हुआ चढ़ता है, इससे खून काला, पीला या सफेद हो जाता है और वही रंगत ऊपर झलकती है।
नोट-दीकर साँपोंके विषके प्रभावसे खूनमें कालापन; मण्डलीके विषसे पीलापन और राजिलके विषसे सफ़दी आ जाती है । - दूसरा वेग--इस वेगमें विष मांसमें मिल जाता है, इससे मांस खराब हो जाता है और उसमें गाँठे-सी पड़ी दीखती हैं । शरीर, नेत्र, मुख, नख और दाँत प्रभृतिमें कालापन, पीलापन या सफेदी ज़ियादा हो जाती है।
नोट-दीकर साँपके विषसे कालापन; मण्डलीके विषसे पीलापन और राजिलके विषसे सफ़ दी होती है । ___ तीसरा वेग-इस वेगमें विष मेद तक जा पहुँचता है, जिससे
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