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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
. (२) मादीन सर्प या नागिनका डसा हुआ आदमी नीचेकी तरफ़ देखता है और उसके सिरकी नसें ऊपर उठी हुई-सी हो जाती हैं।
(३) नपुंसक साँपका काटा हुआ आदमी पीला पड़ जाता और उसका पेट फूल जाता है।
(४) ब्याई हुई साँपनके काटे हुए आदमीके शूल चलते हैं, पेशाबमें खून आता है और उपजिह्विक रोग भी हो जाता है। - (५) भूखे साँपका काटा हुआ आदमी खानेको माँगता है।
(६) बूढ़े सर्पके काटनेसे वेग मन्दे होते हैं। (७) बच्चा सर्पके काटनेसे वेग जल्दी-जल्दी, पर हल्के होते हैं। . (८) निर्विष सर्पके काटनेसे विषके चिह्न नहीं होते । (E) अन्धे साँपके काटनेसे मनुष्य अन्धा हो जाता है ।
(१०) अजगर मनुष्यको निगल जाता है, इसलिए शरीर और प्राण नष्ट हो जाते हैं। यह निगलनेसे ही प्राण नाश करता है, विषसे नहीं।
(११) इनमेंसे सद्यः प्राणहर सर्पका काटा हुआ आदमी ज़मीनपर शस्त्र या बिजलीसे मारे हुएकी तरह गिर पड़ता है। उसका शरीर शिथिल हो जाता और वह नींदमें ग़र्क हो जाता है।
विषके सात वेग । __ “सुश्रुत में लिखा है, सभी तरहके साँपोंके विषके सात-सात वेग होते हैं। बोलचालकी भाषामें वेगोंको दौर या मैड़ कहते हैं।
साँपका विष एक कलासे दूसरीमें और दूसरीसे तीसरीमें--इस तरह सातों कलाओंमें घुसता हैं। जब वह एकको पार करके दूसरी कलामें जाता है, तब वेगान्तर या एक वेगसे दूसरा वेग कहते हैं। इन कलाओंके हिसाबसे ही सात वेग माने गये हैं। इस तरह समझियेः--
(१) ज्योंही सर्प काटता है, उसका विष खून में मिलकर ऊपरको चढ़ता है--यही पहला वेग है।
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