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जंगम-विष-चिकित्सा-सोका वर्णन। १६ काटता है, कोई विषका वेग होनेसे काटता है और कोई अपने बच्चोंकी जीवन-रक्षा करनेके लिये काटता है । वाग्भट्टमें लिखा है:--
आहारार्थ भयात्पादस्पर्शादतिविषात्क्रुधः । पापवृत्तितया वैराह वर्षियमचोदनात् ॥
पश्यन्ति सस्तेषक्तं विषाधिक्यं यथोत्तरम्। भोजनके लिये, डरके मारे, पैर लग जानेसे, विषके बाहुल्यसे, क्रोधसे, पापवृत्तिसे, वैरसे तथा देवर्षि और यमकी प्रेरणासे साँप मनुष्योंको काटते हैं। इनमें पीछे-पीछेके कारणोंसे काटनेमें, क्रमशः विषकी अधिकता होती है। जैसे-डरके मारे काटता है, उसकी अपेक्षा पैर लगनेसे काटता है तब जहरका जोर ज़ियादा होता है। विषकी अधिकतासे काटता है, उसकी अपेक्षा क्रोधसे काटनेपर जहरकी तेजी और भी जियादा होती है। जब सर्प देवर्षि या यमराजकी प्रेरणासे काटता है तब और सब कारणोंसे काटनेकी अपेक्षा विषका जोर अधिक होता है और इस दशामें काटनेसे मनुष्य मर ही जाता है ।
नोट-किस कारणसे काटा है-यह जानकर यथोचित चिकित्सा करनी चाहिये । लेकिन साँपने किस कारणसे काटा है, इस बातको मनुष्य देखकर नहीं जान सकता, इसलिये किस कारणसे काटा है, इसकी पहचानके लिए प्राचीन प्राचार्यांने तर . बतलाई हैं । उन्हें हम नीचे लिखते हैं
सर्पके काटनेके कारण जाननेके तरीके । (१) अगर सर्प काटते ही पेटकी ओर उलट जाय, तो समझो कि उसने दबने या पैर लगनेसे काटा है।
(२) अगर साँपका काटा हुआ स्थान या घाव अच्छी तरह न दीखे, तो समझो कि भयसे काटा है ।
(३ ) अगर काटे हुए स्थानपर दाढ़से रेखा-सी खिंच जाय, तो समझो कि मदसे काटा है।
(४) अगर काटे हुए स्थानपर दो दाढ़ोंके दाग़ हों, तो समझो कि घबराकर काटा है।
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