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चिकित्सा-चन्द्रोदय । (५) अगर काटे हुए स्थानमें दो दाढ़ लगी हों और घाव खूनसे भर गया हो, तो समझो कि विष-वेगसे काटा है ।
सर्पदंशके भेद । _ 'सुश्रुत"-कल्पस्थानके चतुर्थ अध्यायमें लिखा है। -पैरसे दबनेसे, क्रोधसे रुष्ट होकर अथवा खाने या काटनेकी इच्छासे सर्प महाक्रोध करके प्राणियोंको काटते हैं । उनका वह काटना तीन तरहका होता हैः-- ___ (१) सर्पित, (२) रदित और (३) निर्विष । विष-विद्याके जाननेवाले चौथा भेद “सपींगाभिहत" और मानते हैं । ___ सर्पितका अर्थ पूरे तौरसे डसा जाना है । साँपकी काटी हुई जगहपर एक, दो या अधिक दाँतोंके चिह्न गड़े हुए-से दीखते हैं। दाँतोंके निकलनेपर थोड़ा-सा खून निकलता और थोड़ी सूजन होती है । दाँतोंकी पंक्ति पूरे तौरसे गड़ जानेके कारण, साँपका विष शरीरके
खून में पूर्ण रूपसे घुस जाता और इन्द्रियोंमें शीघ्र ही विकार हो आता है, तब कहते हैं कि यह “सर्पित" या पूरा डसा हुआ है। ऐसा दंश या काटना बहुत ही तेज़ और प्राणनाशक समझा जाता है।
(२) रदितका अर्थ खरौंच आना है। जब साँपकी काटी जगहपर नीली, पीली, सफेद या लाली लिये हुए लकीर या लकीरें दीखती हैं अथवा खरौंच-सी मालूम होती है और उस खरौंचमेंसे कुछ खून-सा निकला जान पड़ता है, तब उस दंश या काटनेको “रदित" या खरौंच कहते हैं। इसमें जहर तो होता है, पर थोड़ा होता है, अतः प्राणनाशका भय नहीं होता; बशर्ते कि उत्तम चिकित्सा की जाय ।
(३) निर्विषका अर्थ विष-रहित या विष-हीन है। चाहे काटे स्थानपर दाँतोंके गड़नेके कुछ चिह्न हों, चाहे वहाँसे खून भी निकला हो, पर वहाँ सूजन न हो तथा इन्द्रियों और शरीरकी प्रकृतिमें विकार न हों, तो उस दंशको "निर्विष" कहते हैं।
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