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१७८ . चिकित्सा-चन्द्रोदय । भी जिसे कँप-कँपी न आवे-रोएँ खड़े न हों, उसे असाध्य समझकर वैद्यको त्याग देना चाहिये। यानी उसका इलाज न करना चाहिये।
जिस साँपके काटे हुए आदमीका मुँह टेढ़ा हो जाय, बाल छूते ही टूट-टूटकर गिरें, नाक टेढ़ी हो जाय, गर्दन झुक जाय, स्वर भंग हो जाय, साँपके डसनेकी जगहपर लाल या काली सूजन और सख्ती हो, तो वैद्य ऐसे साँपके काटेको असाध्य समझकर त्याग दे। - जिस मनुष्यके मुंहसे लारकी गाढ़ी-गाढ़ी बत्तियाँ-सी गिरें या कफकी गाँठे-सी निकलें; मुख, नाक, कान, नेत्र , गुदा, लिंग और योनि प्रभृतिसे खून गिरे सब दाँत पीले पड़ जायँ और जिसके बराबर चार दाँत लगे हों, उसको वैद्य असाध्य समझकर त्याग दे-इलाज न करे। ___ "हारीत-संहिता"में लिखा. है, जिस मनुष्यका चलना-फिरना अजीब हो, जिसके सिरमें घोर वेदना हो, जिसके हृदयमें पीड़ा हो, नाकसे खून गिरे, नेत्रों में जल भरा हो, जीभ जड़ हो गई हो, जिसके रोएँ बिखर गये हों, जिसका शरीर पीला हो गया हो और जिसका मस्तक स्थिर न हो यानी जो सिरको हिलाता और घुमाता होउत्तम वैद्य ऐसे साँपके काटे हुए मनुष्योंकी चिकित्सा न करे। हाँ, जिन सर्पके काटे हुओंमें ये लक्षण न हों, उनका इलाज करे ।
जो मनुष्य विषके प्रभावसे मतवाला या पागल-सा हो जाय, जिसकी आवाज़ बैठ जाय, जिसे ज्वर और अतिसार प्रभृति रोग हों, जिसके शरीरका रंग बदल गया हो, जिसमें मौतके-से लक्षण मौजूद हों, जिसके मल मूत्र या टट्टी-पेशाब बन्द हो गये हों और जिसके शरीरमें वेग या लहरें न उठती हों--ऐसे साँपके काटे हुए मनुष्यको वैद्य त्याग दे--इलाज न करे।
सर्पके काटनेके कारण । " सर्प बिना किसी वजह या मतलबके नहीं काटते। कोई पाँवसे दबकर काटता है, तो कोई पूर्व-जन्मके वैरका बदला लेनेको काटता है। कोई डरकर काटता है, कोई मदसे काटता है, कोई भूखसे
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