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जंगम-विष-चिकित्सा--सोका वर्णन। १७७ मघा, आर्द्रा, कृत्तिका, भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाभाद्रपदाइन नक्षत्रों में सर्पका काटा हुआ कदाचित् ही कोई बचता है।
नवमी, पञ्चमी, छठ, कृष्णपक्षकी चौदस और चौथ-इन तिथियों में काटा हुआ और सवेरे-शाम,-दोनों सन्धियों या दोनों काल मिलने के समय काटा हुआ तथा मर्मस्थानों में काटा हुआ मनुष्य नहीं बचता है। ____एक और ज्योतिष-ग्रन्थमें लिखा है:--पार्दा, पूर्वाषाढ़ा, कृत्तिका, मूल, अश्लेषा, भरणी और विशाखा--इन सात नक्षत्रों में सर्पका काटा हुआ मनुष्य नहीं बचता। ये मृत्यु-योग हैं। ____अजीर्ण-रोगी, बढ़े हुए पित्तवाले, थके हुए, आग या घामसे तपे हुए, बालक, बूढ़े, भूखे, क्षीण, क्षतरोगी, प्रमेह-रोगी, कोढ़ी, रूखे शरीर वाले, कमजोर, डरपोक और गर्भवती,--ऐसे मनुष्योंको अगर सर्प काटे तो वैद्य इलाज न करे, क्योंकि इनमें सर्प-विष असाध्य हो जाता है। ____ नोट-ऐसे मनुष्योंमें,मालूम होता है, सर्प-विष अधिक ज़ोर करता है। इसी से चिकित्साकी मनाही लिखी है; पर हमारी रायमें ऐसे रोगियोंको देखते ही त्याग देना ठीक नहीं। अच्छा इलाज होनेसे, ऐसे मनुष्य भी बचते हुए देखें गये हैं। इसमें शक नहीं, ऐसे लोगोंकी सर्प-दंश-चिकित्सामें वैद्यको बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है और सभी रोगी बच भी नहीं जाते; हाँ, अनेक बच जाते हैं। ___ मर्मस्थानों या शिरागत मर्मस्थानों में अगर साँप काटता है, तो केस कष्टसाध्य या असाध्य हो जाता है। शास्त्रकार तो असाध्य होना ही लिखते हैं। _ अगर मौसम गरमीमें, गरम मिज़ाजवाले या पित्त-प्रकृतिवालेको साँप काटता है, तो सभी साँपोंका जहर डबल जोर करता है। अतः ऐसा काटा हुआ आदमी असाध्य होता है। वैद्यको ऐसे आदमीका भी इलाज न करना चाहिये । ____ उस्तरा, छुरी या नश्तर प्रभृतिसे चीरनेपर जिसके शरीरसे खून न निकले; चाबुक, कोड़े या कमची आदिसे मारनेपर भी जिसके शरीरमें निशान न हों और निहायत ठण्डा बर्फ-समान पानी डालनेपर
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