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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
साँपोंके विषकी पहचान । (१) दर्बीकर--भोगी या फनवाले साँपका काटा हुआ स्थान "काला” पड़ जाता है और वायुके सब विकार देखनेमें आते हैं । बङ्गसेनमें लिखा है--“दीकराणां विषमाशु घातिः” यानी दीकर या फनवाले साँपोंका ज़हर शीघ्र ही प्राण नाश कर देता है। काले साँप दर्बीकरोंके ही अन्दर हैं । मशहूर है, कि कालेका काटा फौरन मर जाता है।
(२) मण्डली या चित्तीदार साँपका काटा हुआ स्थान “पीला" पड़ जाता है । काटी हुई जगह नर्म होती और उसपर सूजन होती है तथा पित्तके सब विकार देखने में आते हैं।
(३) राजिल या धारीदार साँपके काटे हुए स्थानका रङ्ग “पाण्डु वर्ण या भूरा-मटमैला-सा" होता है। काटी हुई जगह सख्त, चिकनी, लिबलिबी और सूजनयुक्त होती है तथा वहाँसे अत्यन्त गाढ़ा-गाढ़ा
खून निकलता है। इन लक्षणोंके सिवा, कफ-विकारके सारे लक्षण नज़र आते हैं।
नोट-भोगीका डसा हुआ स्थान काला, मण्डलीका डसा हुश्रा स्थान पीला और राजिलका डसा हुआ पाण्डु रंग या भूरा-मटमैला होता है। मण्डलीकी सूजन नर्म और राजिलकी सख्त होती है। राजिलके किये घावसे निहायत गाढ़ा खून निकलता है । ये लक्षण हमने बंगसेनसे लिखे हैं । और कई ग्रन्थोंमें लिखा है, कि साँपमात्रकी काटी हुई जगह 'काली' हो जाती है।
देश-कालके भेदसे साँपोंके विषकी असाध्यता । -
पीपलके पेड़के नीचे, देव-मन्दिरमें, श्मशानमें, बॉबीमें और चौराहेपर अगर साँप काटता है, तो काटा हुआ मनुष्य नहीं जीता । ___ भरणी, मघा, आर्द्रा, अश्लेषा, मूल और कृत्तिका नक्षत्र में अगर सर्प काटता है, तो काटा हुआ आदमी नहीं बचता। इनके सिवा, पञ्चमी तिथिमें काटा हुआ मनुष्य भी मर जाता है-यह ज्योतिषके ग्रन्थोंका मत है।
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