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जंगम-विष-चिकित्सा-सोका वर्णन। १७५ होती है, अतः इनके विषसे चमड़ा और नेत्र-प्रभृति सफ़ेद हो जाते हैं । शीतज्वर, रोमांच, शरीर अकड़ना, काटे स्थानपर सूजन, मुँहसे गाढ़ा कफ गिरना, कय होना, बारम्बार नेत्रोंमें खुजली और श्वास रुकना प्रभृति कफ-विकार देखने में आते हैं। इनके विषके लक्षण भी आगे लिखेंगे । इनकी मुख्य पहचान इनके गण्डे, रेखायें या धारियाँ एवं शरीर-सौन्दर्य या खूबसूरती है ।
निर्विष। (४) निर्विष या विषरहित--जिनमें विषकी मात्रा थोड़ी होती या होती ही नहीं, उनको निर्विष कहते हैं। अजगर, दुमुही या दुम्बी तथा पनिया-साँप इन्हीं में हैं। अजगर मनुष्य या पशुओंको निगल जाता है, काटता नहीं। दुम्बी खेतोंमें आदमियोंके शरीरसे या पैरोंसे लिपट जाती है, पर कोई हानि नहीं करती। पनिया साँपके काटनेसे या तो विप चढ़ता ही नहीं या बहुत कम चढ़ता है। पानीके साँप नदी-तालाब आदिके पानीमें रहते हैं । अजगर बड़े लम्बे-चौड़े में हवाले और बोझमें कई मनके होते हैं। यह साँप चपटा होता है और उसके एक मुँह होता है; पर दुमुही-दुम्बीका शरीर गोल होता है और उसके दोनों ओर दो मुंह होते हैं।
दोगले। . (५) दोगले--इन्हें वैकरंज भी कहते हैं। जब नाग और नागिन दो जातिके मिलते हैं, तब इनकी पैदायश होती है। जैसे, राजिल जातिका साँप और भोगी जातिकी साँपिन संगम करेंगे, तब दोगला पैदा होगा । उसमें माँ और बाप दोनोंके लक्षण पाये जायँगे । वाग्भट्टने लिखा है-राजिल, मण्डली अथवा भोगी प्रभृतिके मेलसे “व्यन्तर" नामके साँप होते हैं । उनमें इनके मिले हुए लक्षण पाये जाते हैं और वे तीनों दोषोंको कुपित करते हैं । परन्तु कई आचार्योंने लिखा है कि, दोगले दो दोषोंको कुपित करते हैं, क्योंकि उनकी प्रकृति ही द्वन्द्वज होती है।
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