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जंगम-विष-चिकित्सा-सोका वर्णन। १६६ मशहूर है कि, भूखी नागिन अपने अण्डे खा जाती है। भूखा कौनसा पाप नहीं करता ? शेषमें, उसे अपने अण्डोंपर दया आ जाती है, इसलिये कुछको छोड़ देती और उन्हें छै महीने तक सेया करती है। .
सापोंके दाद-दाँत । अण्डोंसे निकलनेके सातवें दिन, बच्चोंका रङ्ग अपने माँ-बापके रङ्गसे मिल जाता है। सात दिनके बाद ही दाँत निकलते हैं और इक्कीस दिनके अन्दर तालूमें विष पैदा हो जाता है। पच्चीस दिनका. बच्चा जहरीला हो जाता है और 2 महीनेके बाद वह काँचली छोड़ने लगता है । जिस समय साँप काटता है, उसका जहर निकल जाता है; किन्तु फिर आकर जमा हो जाता है । साँपके दाँतोंके ऊपर विषकी थैली होती है । जब साँप काटता है, विष थैलीमेंसे निकलकर काटे हुए घावमें आ पड़ता है। ____ कहते हैं, साँपोंके एक मुँह, दो जीभ, बत्तीस दाँत और ज़हरसे भरी हुई चार दाढ़ें होती हैं । इन दाढ़ोंमें हर समय जहर नहीं रहता। जब साँप क्रोध करता है, तब जहर नसोंकी राहसे दाढ़ोंमें आ जाता है । उन दाढ़ोंके नाम मकरी, कराली, कालरात्रि और यमदूती हैं। पिछली दाढ़ यमदूती छोटी और गहरी होती है । जिसे साँप इस दाढ़से काटता है, वह फिर किसी भी दवा-दारू और यन्त्रमन्त्रसे नहीं बचता। ___ कई ग्रन्थोंमें लिखा है , साँपके चार दाँत और दो दाढ़ होती हैं। विषवाली दाढ़ ऊपरके पेमें रहती है। वह दाढ़ सूईके समान पतली और बीचमेंसे विकसित होती है। उस दाढ़के बीचमें छेद होते हैं और उसी दाढ़के साथ जहरकी थैलीका सम्बन्ध होता है। यों तो वह दाढ़ मुँहमें आड़ी रहती है, पर काटते समय खड़ी हो जाती है । अगर साँप शरीरके मुंह लगावे और उसी समय फेंक दिया जाय, तो मामूली घाव होता है । अगर सामान्य घाव हो और विष
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