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[ ङ ] टेम्परेचर कितना ऊँचा चढ़ जायगा, यह लिखकर बता नहीं सकते। इस भागमें सैकड़ों नये-पुराने ग्रन्थोंके सिवा, “वैद्यकल्पतरु" अहमदाबाद और "हमारी शरीर रचना" से दो-एक जगह काम लिया गया है । अतः हम उनके लेखक और प्रकाशक दोनोंका तहेदिलसे शुक्रिया अदा करते हैं। ___ जो लोग यह समझते हैं कि, इस ग्रन्थके प्रकाशक इसके भागपर-भाग निकालकर मालामाल होना चाहते हैं, उनकी ग़लती है। हम यह नहीं कह सकते, कि हम इसकी आमदनीसे अपना काम नहीं चलाते । ऐसा कहना वृथा असत्य भाषण करना है । “एक पन्थ दो काज" की कहावत-अनुसार, हमारा उद्देश पबलिककी सेवा करना, आयुर्वेद-प्रेम बढ़ाना, देशका पैसा बचवाना और साथ ही अपनी गुजर करना है । काम हम यह करेंगे, तो खायेंगे किसके घर ? भागपर-भाग हम अपनी आमदनी बढ़ानेके लिए नहीं निकाल रहे हैं। यह विषय ही ऐसा है, कि इसे जितना ही बढ़ाओ बढ़ सकता है और जितना ही विस्तारसे लिखा जाता है, उतना ही लाभदायक सिद्ध होता है । हम क्या लिख रहे हैं, होमियोपैथी में एक-एक रोगके निदानलक्षण और चिकित्सा सैकड़ों ही पेजों में है । अगर पाठक आफ़त ही कटवाना चाहते हैं, तो फिर हमसे इसके लिखवानेकी क्या दरकार ? क्या ग्रन्थोंका अभाव है ? इस ग्रन्थमें कुछ भी नूतनता और सरलता तो होनी चाहिये।
निन्न्यानवे फ्री सदी ग्राहक "चिकित्सा-चन्द्रोदय"की कीमतपर जरा भी आपत्ति नहीं करते, पर चन्द मिहरबान ऐसे भी हैं जो लिखा करते हैं, कि आपने क़ीमत जियादा रक्खी है । हमारे ऐसे समझदार ग्राहकोंको समझना चाहिये, कि इस राज-नगरीमें सब तरहके खर्च बहुत जियादा हैं । अगर हम इतनी कीमत भी न रखें, जोशमें आकर, अखबारी प्रशंसा लाभ करनेके लिये, हिन्दीके सच्चे सेवककी पदवी प्राप्त करनेके लिये, एकदम कम मूल्य रखें, तो अन्तमें हमें फेल होना
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