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[ घ ] जड़ी-बूटी, घरका दूध, घी और दवा-मात्र सेवन करके अपने-तई रोग-मुक्त कर सकेंगे।
इस भागमें रोगोंका सिलसिला ठीक नहीं है एवं अवकाश न मिलने और आफतमें फँसे रहनेके कारण अनेकों दोष भी रह गये हैं, उनके लिये पाठक हमें क्षमा प्रदान करेंगे । अगर हम अपनी ज़िन्दगीमें इस ग्रन्थको पूरा कर सके, तो शेषमें हम इसकी एक कुञ्जी ( Koy ) भी बनायेंगे। जो बातें इन भागोंमें छूट गई हैं, उन सबपर उसमें लिखा जायगा । उस कुञ्जीके होनेसे जो जरा-बहुत संशय खड़ा हो जाता है, वह भी मिट जायगा । यद्यपि वह कुञ्जी तीन-चार सौ पृष्ठोंसे कमकी न होगी, पर उसे हम ग्राहकोंको धेली आठ आना लागतखर्च लेकर ही दे देंगे। उसमें एक कौड़ी भी नफा न लेंगे।
यद्यपि यह ग्रन्थ पूर्ण वैद्योंके लिये नहीं है, फिर भी सैकड़ों वैद्यशास्त्री और आयुर्वेद केसरी आदि इसे बड़े शौकसे खरीद रहे हैं। उन्हें ऐसे 'भाषा' के ग्रन्थ देखनेकी जरूरत नहीं। हम समझते हैं, वे साधारण लोगोंके उपकारके लिये या हमारा उत्साह बढ़ानेके लिये ही इसे खरीद रहे हैं। अतः हम उन्हें धन्यवाद देकर, उनसे सविनय प्रार्थना करते हैं कि, वे जहाँ कोई त्रुटि देखें, उसे दयाकर हमें लिख भेजें । क्योंकि एक आदमीके जल्दीके किये काममें अनेकों दोष रह जाते हैं और इस ग्रन्थमें भी अनेकों दोष होंगे। कितनी ही जगह तो अर्थका अनर्थ हुआ होगा । यद्यपि इस ग्रन्थकी आयको हम खाते हैं, तथापि उदार हृदय सज्जन इस बातकी पर्वा न करके, इस ग्रन्थके दोष दूर करानेमें हमारी सहायता करके अक्षय पुण्य और धन्यवादके पात्र होंगे। दोषपूर्ण होनेपर भी, इस ग्रन्थसे पबलिकका बड़ा उपकार हो रहा है और होगा, यह जानकर हमें बड़ी खुशी है, पर यदि यह ग्रन्थ परोपकार-परायण विद्वानोंकी सहायतासे निर्दोष या दोषरहित हो जायगा, तो कितना उपकार होगा और हमारी खुशीका
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