________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ च ] पड़ेगा, काम बन्द कर देना होगा। जिन लोगोंने ऐसा किया है, वे हिन्दी-सेवासे रिटायर हो गये और जो ऐसा कर रहे हैं, उनको भी एक-न-एक दिन टाट उलटना ही पड़ेगा । परमात्मा हमें इन बातोंसे बचावे हमारी इज्जत-आबरू बनाये रक्खे ! ___ बहुतसे पाठक, उकताकर लिखते हैं-"आपने यह ग्रन्थ लिखकर बड़ा उपकार किया है । ग्रन्थ निस्सन्देह सर्वाङ्ग सुन्दर है । हमने इससे बहुत लाभ उठाया है । इसके नुसखोंने अच्छा चमत्कार दिखाया है। पर एक-एक भाग निकालना और उसके लिये चातककी तरह टकटकी लगाये राह देखना अखरता है। मूल्यकी परवाह नहीं, आप जल्दी ही सब भाग खतम कीजिये इत्यादि।" हमारे ऐसे प्रेमी और उतावले ग्राहकोंको यह समझकर, कि जल्दीमें काम खराब होता है
और आयुर्वेद बड़ा कठिन विषय है, इसका लिखना बालकोंका खेल नहीं, जरा धैर्य रखना चाहिये और देरके लिये हमें कोसना न चाहिये । ____ अगले छठे भागमें हम रक्त-पित्त, खाँसी, श्वास, उदररोग, वायुरोग आदि समस्त रोगोंके निदान, लक्षण और चिकित्सा विस्तारसे लिखेंगे और जगदीश कृपा करें, तो प्रायः सभी रोगोंको उस भागमें खतम करेंगे । सातवें और आठवें भागोंमें औषधियोंके गुण रूप वगैरः मय चित्रोंके लिखेंगे । यह भाग चाहे ग्राहकोंको पसन्द आ जाय और निश्चय ही पसन्द होगा, इससे उनका काम भी खूब निकलेगा और हजारों प्राणी कष्ट और असमयकी मौतसे बचेंगे, इसमें शक नहीं पर हमें इसमें अनेकों त्रुटियाँ दीखती हैं । अतः आयन्दः हम जल्दीसे काम न लेंगे । पाठकोंसे भी कर जोड़ विनय है कि, छठे भागके लिये धैर्य धरें; अगर इस दफाकी तरह विघ्न-बाधायें उपस्थित न हुई, ईश्वरने कुशल रक्खी और वह सानुकूल रहे, तो छठा भाग पाँच-छै महीनोंमें ही निकल जायगा । एवमस्तु ।
. विनीत--
हरिदास ।
For Private and Personal Use Only