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शत्रुओं द्वारा दिये हुए विषकी चिकित्सा। १५३ ___"चरक" में लिखा है, विषके पक्वाशयमें होनेसे मूर्छा, दाह, मतवालापन और बल नाश होता है और विषके उदरस्थ होनेसे तन्द्रा, कृशता और पीलिया-ये विकार होते हैं। ___ नोट--विष-मिली खानेकी चीज़ खानेसे पहले कोठेमें दाह या जलन होती है । अगर विष-मिली छूने की चीज़ छुई जाती है, तो पहले चमड़ेमें जलन होती है।
चिकित्सा। (१) कालादाना पीसकर और धीमें मिलाकर पिलानेसे दस्त होते और जहर निकल जाता है।
(२) दही या शहद के साथ दूषी-विषारि-चौलाई आदि देनेसे भी दस्त हो जाते हैं।
(३) कालादाना ३ तोले, सनाय ३ तोले, सोंठ ६ माशे और कालानोन डेढ़ तोले-इन सबको पीस-छानकर, फँकाने और ऊपरसे गरम जल पिलानेसे दस्त हो जाते हैं। विष खानेवालेको पहले थोड़ा घी पिलाकर, तब यह दवा फँकानी चाहिये । मात्रा ६ से ६ माशे तक । परीक्षित है।
(४) नौ माशे कालेदानेको घीमें भून लो और पीस लो। फिर उसमें ६ रत्ती सोंठ भी पीसकर मिला दो । यह एक मात्रा है। इसको फाँककर, ऊपरसे गरम जल पीनेसे १७ दस्त अवश्य हो जाते हैं । अगर दस्त कम कराने हों, तो सोंठ मत मिलाओ । कमजोर और नरम कोठे वालोंको कालादाना ६ माशेसे अधिक न देना चाहिये।
(५) छोटी पीपर १ माशे, सोंठ २ माशे, सैंधा नोन ३ माशे, बिधाराकी जड़की छाल ६ माशे और निशोथ ६ माशे-इन सबको पीसछानकर और १ तोले शहदमें मिलाकर चटाने और ऊपरसे, थोड़ा गरम जल पिलानेसे दस्त हो जाते हैं । यह जवानकी १ मात्रा है। बलाबल देखकर, इसे घटा और बढ़ा सकते हो । परीक्षित है।
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