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चिकित्सा-चन्द्रोदय । अनुसार पाँच दिन सवेरे ही पिलायो। इसके पिलानेसे क्रय और दस्त होकर सारा ज़हर निकल जाता है और रोगी चंगा हो जाता है। पर आनेवाली बरसात तक पथ्य-पालन करना परमावश्यक है।
अगर गलेमें सूजन हो और गला रुका हो, तो कड़वी तोरई को चिलममें रखकर, तमाखुको तरह, पीने से लार टपकती है और गला खुल जाता है ।
(४) कड़वे परबल घिसकर पिलानेसे, कय होकर, विष निकल जाता है।
(५) छोटी पीपर २ माशे, मैनफल ६ माशे और सैंधानोन ६ माशे-इन तीनोंको सेर-भर पानीमें जोश दो; जब तीन पाव पानी रह जाय, मल-छानकर गरम-गरम पिला दो और रोगीको घुटने मोड़कर बिठा दो, कय हो जायँगी। अगर कय होने में देर हो या कय खुलकर न होती हों, तो पखेरूका पंख जीभ या तालूपर फेरो अथवा अरण्डके पत्तेकी डंडी गलेमें घुसाओ अथवा गलेमें अंगुली डालो । इन उपायोंसे कय जल्दी और खूब होती हैं । परीक्षित है।
(६) दही, पानी-मिले दही और चाँवलोंके पानीसे भी वमन कराकर जहर निकालते हैं।
(७) जहरमोहरा गुलाब जलमें घिस-घिसकर, हर कयपर, एकएक गेहूँ-भर देनेसे कय होकर विष निकल जाता है । परीक्षित है ।
र पक्वाशयगत विषके लक्षण ।
जब जहर खाये या जहरके भोजन-पान खाये देर हो जाती है, विषके आमाशयमें रहते-रहते वमन या कय नहीं कराई जाती, तब विष पक्वाशयमें चला जाता है । जब विष पक्वाशयमें पहुंच जाता है, तब जलन, बेहोशी, पतले दस्त, इन्द्रियोंमें विकार, रंगका पीला पड़ जाना और शरीरका दुबला हो जाना-ये लक्षण होते हैं । कितनों हीके शरीरका रंग काला होते भी देखा जाता है।
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