________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शत्रुओं द्वारा दिये हुए विषकी चिकित्सा।
१५१
प्रामाशयगत विषके लक्षण ।
अगर विष आमाशय या मेदेमें पहुँच जाता है, तो बेहोशी, कय, पतले दस्त, पेट फूलना या पेटपर अफारा आना, जलन होना, शरीर काँपना और इन्द्रियोंमें विकार -ये लक्षण होते हैं।
"चरक में लिखा है, अगर विष-मिले खानेके पदार्थ या पीनेके दूध, जल, शर्बत आदि आमाशयमें पहुंच जाते हैं, तो शरीरका रंग
और-का-और हो जाता है, पसीने आते हैं तथा अवसाद और उत्क्लेश होता है, दृष्टि और हृदय बन्द हो जाते हैं तथा शरीरपर बूंदोंके समान फोड़े हो जाते हैं। अगर ऐसे लक्षण नज़र आवें और विष आमाशयमें हो, तो सबसे पहले “वमन" कराकर, विषको फौरन निकाल देना चाहिये। क्योंकि विषके आमाशयमें होनेपर “वमन"से बढ़कर और दवा नहीं है।
चिकित्सा। (१) मैनफल, कड़वी तूम्बी, कड़वी तोरई और बिम्बी या कन्दूरी--इनका काढ़ा बनाकर पिलाओ।
(२) एकमात्र कड़वी तूम्बीके पत्ते या जड़ पानीमें पीसकर पिलाओ। इससे वमन होकर विष निकल जाता है। यह नुसखा हर तरह के विषोंपर दिया जा सकता है। परीक्षित है।
(३ ) कड़वी तोरई लाकर, पानीमें काढ़ा बनाओ। फिर उसे छानकर, उसमें घी मिला दो और विष खानेवालेको पिला दो। इस उपायसे वमन होकर जहर उतर जायगा।
नोट-कड़वी तोरई भी हर तरहके विषपर लाभदायक होती है । अगर पागल कुत्ता काट खावे, तो कड़वी तोरई का गूदा मय रेशेके निकालकर, पावभर पानीमें अाध घण्टे तक भिगो रखो। फिर उसे मसल-छानकर, रोगीकी शक्ति
For Private and Personal Use Only