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चिकित्सा-चन्द्रोदय ।
नोट-चमन-विरेचन करानेवाले वैद्यको “चिकित्सा-चन्द्रोदय" पहले भागके अन्तमें लिखे हुए चन्द पृष्ठ और दूसरे भागके १३५-११२ तकके सफे ध्यानसे पढ़ने चाहिये । क्योंकि वमन-विरेचन कराना लड़कोंका खेल नहीं है ।
HAMIRMIRMIRENIMATHAKRE * मालिश करानके तेल में विष-परीक्षा ।
अगर शरीरमें मलने या मालिश करानेके तेलमें विष मिला होता है, तो वह तेल गाढ़ा, गदला और बुरे रङ्गका हो जाता है। अगर वैसे तेलकी मालिश कराई जाती है, तो शरीरमें फोड़े या फफोले हो जाते हैं, चमड़ा पक जाता है, दर्द होता है, पसीने आते हैं, ज्वर चढ़
आता है और मांस फट जाता है । अगर ऐसा हो, तो नीचे लिखे उपाय करने चाहियें:--
चिकित्सा। (१) शीतल जलसे शरीर धोकर या नहाकर, चन्दन, तगर, कूट, खस, वंशपत्री, सोमवल्ली, गिलोय, श्वेता, कमल, पीला चन्दन और तज--इन दवाओंको पानीमें पीसकर, शरीरपर लेप करना चाहिये। साथ ही इनको पीसकर, कैथके रस और गोमूत्रके साथ पीना भी चाहिये।
नोट--सोमवल्जीको सोमलता भी कहते हैं। थूहरकी कई जातियाँ होती हैं, उनमेंसे सोमजता भी एक तरहकी बेल है । इस लताका चन्द्रमासे बड़ा प्रेम है। शुक्रपक्षकी पड़वासे हर रोज़ एक-एक पत्ता निकलता है और पूर्णमासीके दिन पूरे १५ पत्त हो जाते हैं। फिर कृष्ण पक्षकी पड़वासे हर दिन एक-एक पत्ता गिरने लगता है । अमावसके दिन एक भी पत्ता नहीं रहता। इसकी मात्रा २ माशेकी है । सुश्रुतमें इसके सम्बन्धमें बड़ी अद्भुत-अद्भुत बातें लिखी हैं। इस विषयपर फिर कभी लिखेंगे। सुश्रुतमें लिखा है, सिन्ध नदीमें यह तुम्बीकी तरह बहती पाई जाती है । हिमालय, विन्ध्याचल, सह्याद्रि प्रभृति पहाड़ोंपर इसका पैदा होना लिखा है। इसके सेवन करनेसे काया पलट होती है। मनुष्य-शरीर देवताओंके जैसा रूपवान और बलवान हो जाता
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