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विष उपविषों की विशेष चिकित्सा - " अफ़ीम " ।
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वाजिब मात्रा देते हैं । नींद आनेसे रोगका बल घटता है । वरके सिवा और सभी रोगों में अफ़ीम से नींद आ जाती है । उन्माद रोग में नींद बहुधा नाश हो जाती है और नींद आने से उन्माद रोग आराम होता है । उन्माद रोगके साथ होनेवाले निद्रानाश रोगको अफीम फौरन नाश कर देती है । उन्मादमें हर बार एक-एक रक्ती अफीम देनेसे भी कोई हानि नहीं होती | उन्माद रोगी अफीम अधिक मात्राको सह सकता है, पर सभी तरहके उन्माद रोगों में अफीम देना ठीक नहीं । जब उन्माद रोगीका चेहरा फीका हो, नाड़ी मन्दी चलती हो और नींद न आने से शरीर कमज़ोर होता हो; तब अफीम देना उचित है । किन्तु जब उन्माद रोगीका चेहरा सुर्ख हो अथवा मुँह या सिरकी नसों में . खून भर गया हो, तब अफीम न देनी चाहिये । इस हालतके सिवा और सब हालतों में— उन्माद रोग में अफीम देना हितकर है । उन्मादके शुरू में अफीम सेवन कराने से उन्माद रोग रुकते भी देखा गया है ।
(१०) उन्माद रोगके शुरू होते ही, अगर अफीमकी उचित मात्रा दी जाय, तो उन्माद रुक सकता है । जब उन्माद रोगमें जरा-जरा देर में रोगीको जोश आता और उतरता है, उस समय रती - रत्ती भर की मात्रा देनेसे बड़ा उपकार होता है । रत्ती - रत्तीकी मात्रा बारम्बार देनेसे भी हानि नहीं होती - अफीमका ज़हर नहीं चढ़ता । उन्मादमें जो नींद न आनेका दोष होता है, वह भी जाता रहता है. नींद आने लगती है और रोग घटने लगता है । पर जब उन्माद रोगीका चेहरा सुर्ख हो या सिरकी नसों में ख़ून भर गया हो, अफीम देना हानिकर है । परीक्षित है ।
( ११ ) अगर नासूर हो गया हो, तो आदमी के नाखून जलाकर राख कर लो। फिर उस राखमें तीन रत्ती अफीम मिलाकर, उसे नासूर में भर दो। इस क्रियाके लगातार करनेसे नासूर आराम हो जाता है ।
नोट- -यह नुसखा हमारा परीक्षित नहीं है । "वैद्यकल्पतरु " में जिन सज्जन ने लिखा है, उनका श्राजमाया हुआ जान पड़ता है, इससे हमने लिखा है I (१२) छोटे बालकको जुकाम या सर्दी हो गई हो, तो
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