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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"अफीम"। १०३ हमारे आजमूदा हैं, उनके सामने "परीक्षित" शब्द लिखेंगे । पर जिनके सामने 'परीक्षित" शब्द न हो, उन्हें भी आप कामके समझ-व्यर्थ न समझें । हमने "चिकित्सा-चन्द्रोदय" के पहलेके भागोंमें जो नुसखे लिखे हैं, उनमेंसे अधिक परीक्षित हैं, पर जिनकी अनेक बार परीक्षा नहीं की--एकाध बार परीक्षा की है- उनके सामने “परीक्षित" शब्द नहीं लिखे । पाठक परीक्षित और अपरीक्षित दानों तरहके नुसखोंसे काम लें। बेकाम नुसने हम क्यों लिखने लगे ? सम्भव है, इतने बड़े संग्रहमें, कुछ बेकाम नुसख्खे भी निकल आवें, पर बहुत कम; क्योंकि हम इस कामको अपनी सामर्थ्य-भर विचार-पूर्वक कर रहे हैं। औषधि-प्रयोग । (१) बलाबल-अनुसार पाव रत्तीसे दो रत्ती तक, अफीम पानमें धरकर खानेसे धनुस्तम्भ रोग नाश हो जाता है। (२) शुद्ध अफीम, शुद्ध कुचला और कालीमिर्च--तीनोंको बराबर-बराबर लेकर बँगला पानोंके रसके साथ घोटकर, एकएक रत्तीकी गोलियाँ बनाकर, छायामें सुखा लो। एक गोली, सवेरे ही, खाकर, ऊपरसे पानका बीड़ा या खिल्ली खानेसे दण्डापतानक रोग, हैजा, सूजन और मृगी रोग नाश हो जाते हैं। इन गोलियोंका नाम “समीरगज-केशरी बटी" है; क्योंकि ये गोलियाँ समीर यानी वायुके रोगोंको नाश करती हैं। वायु-रोगोंपर ये गोलियाँ बराबर काम देती हैं। जिसमें भी दण्डापतानक रोगपर, जिसमें शरीर दण्डेकी तरह अचल हो जाता है, खूब काम देती हैं। इसके सिवा हैजे वगैरः उपरोक्त रोगोंपर भी फेल नहीं होती। परीक्षित हैं।। ____ नोट--अभी एक ग़रीब ब्राह्मण, एक नीम हकीमके कहनेसे, बुखारमें बोतलों शर्बत गुलबनफशा पी गया । बेचारेका शरीर लकड़ी हो गया। सारे जोड़ों में दर्द और सूजन आ गई। हमारे एक स्नेही मित्र और ज्योतिष-विद्याके धुरन्धर विद्वान् पण्डित मन्नीलालजी व्यास बीकानेरवाले, दयावश, उसे उठवाकर हमारे For Private and Personal Use Only
SR No.020158
Book TitleChikitsa Chandrodaya Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaridas
PublisherHaridas
Publication Year1937
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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