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चिकित्सा-चन्द्रोदय । नसें इससे पुष्ट होती हैं। बातें बनानेकी अधिक सामर्थ्य हो जाती है एवं हिम्मत-साहस, पराक्रम और चातुरी बढ़ जाती है। शरीरमें : बल और फुर्ती आ जाती है और एक प्रकारका अकथनीय आनन्द आता है । इस अवस्थाके थोड़ी देर बाद-घड़ी दो घड़ी या ज़ियादा देर बाद सुखकी नींद आती है। अफीमका प्रभाव प्रकृति-भेदसे भिन्न-भिन्न प्रकारका होता है। किसीको इससे दस्त साफ होता है
और किसीको दस्तक़ब्ज़ होता है। किसीको इससे नशा बहुत होकर ग़फ़लत होती है और किसीके शरीरमें उत्तेजना फैलनेसे चैतन्यता होती है । दर्दकी हालतमें देनेसे कम नशा आता है । भरे पेटपर अफीम जल्दी नहीं चढ़ती, पर खाली पेट खानेसे जल्दी नशा लाती है। मृत्युकाल नजदीक होनेपर, जरा-सी भी अफीमकी मात्रा शीघ्र ही मृत्यु कर देती है।"
आयुर्वेदीय ग्रन्थों में लिखा है, अफीम शोषक, ग्राही, कफनाशक, वायुकारक, पित्तकारक, वीर्यवर्द्धक, आनन्दकारक, मादक, वीर्यस्तम्भक तथा सन्निपात, कृमि, पाण्डु, क्षय, प्रमेह, श्वास, खाँसी, सीहा और धातुक्षय रोग नाशक होती है। अफीमके जारण, मारण, धारण और सारण चार भेद होते हैं। सफेद अफीम अन्नको जीर्ण करती है, इसलिये उसे “जारण" कहते हैं। काली मृत्यु करती है, इसलिये उसे "मारण” कहते हैं। पीली जरा-नाशक है, इसलिये उसे "धारण" कहते हैं । चित्रवर्णकी मलको सारण करती है, इसलिये उसे सारण कहते हैं । अफीमके दर्पको नाश करनेवाले घी और तवासीर हैं
और प्रतिनिधि या बदल आसवच है । मात्रा पाव रत्ती या दो चाँवल-भरकी है। __ यद्यपि अफीम प्राण-नाशक विष या उपविष है, तथापि अनेक भयङ्कर रोगोंमें अमृत है। इसलिये हम इसके उत्तमोत्तम प्रयोग या नुसने पाठकोंके उपकारार्थ लिखते हैं । इनमेंसे जो नुसखे
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