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विष-उपविषोंकी विशेष चिकित्सा-"अफ़ीम"। १०१ वह पहलेसे मोटे-ताज़े भी हो गये। सच पूछो तो चढ़ी उम्रमें नजलेकी खाँसीकी अफीमके सिवा और दवा ही नहीं । बादशाह अकबरको भी बुढ़ापेमें नजलेकी खाँसी हो गई थी। बड़े-बड़े नामी दरबारी हकीमोंने लाखों-करोड़ोंकी दवाएँ बनाकर शाहन्शाहको खिलाई, पर खाँसी न गई; तब लाचार होकर अफीमका आश्रय लेना पड़ा । अन्तकाल तक बादशाहकी जिन्दगीकी नाव अफीमने ही खेयी । कहिये, दिल्लीश्वरके यहाँ क्या अभाव था ! आकाशके तारे भी तोड़कर, लाये जा सकते थे। दुर्लभ-से-दुर्लभ दवाएँ श्रा सकती थीं । हकीम-वैद्य भी अकबरके दरबारसे बढ़कर कहाँ होंगे ! ... शराब या मदिरा भी यदि थोड़ी और कायदेसे पीयी जाय, तो मनुष्यको बड़ा लाभ पहुँचाती है, परन्तु उससे शरीरकी सन्धियाँ पुष्ट न होकर उल्टी ढीली हो जाती हैं; पर अफीमसे शरीरके जोड़ पुष्ट होते हैं । सरकारी कमीशनके सामने गवाही देते समय भी भारतके देशी और योरुपीय चिकित्सकोंने कहा था-"व्यसनके रूपमें भी शराबकी अपेक्षा अफीम ज़ियादा गुणकारी है ।" सरकारने अफीमका प्रचार रोकनेके लिये कमीशन बिठाया था, पर अन्तमें अफीमके सम्बन्धमें ऐसी-ऐसी बातें सुनकर, उसे अपना विचार बदल देना पड़ा।
डाक्टरी पुस्तकोंमें अफीमके सम्बन्धमें लिखा है:--"अफीम मस्तिष्कमें उत्तेजना करनेवाली, नींद लानेवाली, दर्द या पीड़ा नाश करनेवाली, पसीना लाने वाली, थकान नाश करनेवाली
और नशीली है । अफीमकी हल्की मात्रा लेनेसे, पहले उसकी गरमी सारे शरीरमें फैलती है, पीछे सिरमें नशा होता है। पूरी मात्रा खानेसे १५।२० मिनटमें ही नशा आने लगता है। पहले सिरमें कुछ भारीपन मालूम होता है । इसके बाद शरीर चैतन्य हो जाता है
और बदनमें किसी तरहकी वेदना होती है, तो वह भी हवा हो जाती है। इससे बुद्धि खिलती है, क्योंकि बुद्धिं धारण करनेवाली
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