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चिकित्सा - चन्द्रोदय |
है । यह भाँग अत्यन्त गरम होती है । जो नशेबाज इसकी हानियोंको नहीं समझते, वे ही ऐसा करते और नाना प्रकारके रोगों को निमन्त्रण देकर बुलाते हैं ।
भाँग अगर ठीक मसाला डालकर, कम मात्रामें, घोटी-छानी और पीयी जाय, तो उतनी हानि नहीं करती; वरन् अनेक लाभ करती है । गरमी के मौसम में, सन्ध्या-समय, मसालों के साथ घोट-छानकर पीयी हुई भाँग, मनुष्यको हैज़ेके प्रकोप से बचाती, खूब भूख लगाती और रुचि बढ़ाती है। इसके नशे में सूखा-सर्रा जैसा भी भोजन मिल जाता है, बड़ा स्वाद लगता और जल्दी ही हज़म हो जाता है । इसके शामको पीने और भोजनमें रबड़ी या धौटा दूध मिश्री मिला हुआ पीने से स्त्री-प्रसङ्गकी इच्छा खूब होती है और बेफिक्री या निश्चिन्तता होनेसे आनन्द भी अधिक आता और स्तम्भन भी मामूलसे जियादा होता है; पर अत्यधिक भाँग पीनेवालों को इनमें से कोई भी आनन्द नहीं आता । वे इसके नशेमें बहुत ही ज़ियादा नाक तक हूँ स-हूँ कर खा लेने से बीमार हो जाते हैं। अगर बीमार नहीं होते, तो खाटपर जाकर इस तरह पड़ जाते हैं, कि लोग उन्हें मुर्दा समझने लगते हैं। वही कहावत चरितार्थ होती है, “घरके जाने मर गये और आप नशेके बीच ।" जो इस तरह अँधाधुन्ध भाँग पीते हैं, वे महामूर्ख होते हैं ।
भाँग गरम-बादी या उष्णवात पैदा करती है और सौंफ गरमबादीको नाश करती है; अतः भाँग पीनेवालोंको भाँगके साथ " सौंफ " अवश्य लेनी चाहिये। सौंफ के सिवा, बादाम, छोटी इलायची, गुलाब के फूल, खीरे, ककड़ीके बीजोंकी मींगी, मुलेठी, खस
सके दाने, धनिया और सफेद चन्दन आदि भी लेने चाहियें। इनके साथ पीसकर और मिश्री या चीनी के साथ छानकर भाँग पीनेसे, गरमी के मौसम में, बेइन्तहा फायदे होते हैं। पर एक आदमी के
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