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विष-उपविर्षोंकी विशेष चिकित्सा- "भाँग"। हिस्से में एक या दो-तीन रत्तीसे जियादा भाँग न आनी चाहिये । भाँगको खूब धुलवाकर, बीज निकाल देने चाहियें। छानते समय, थोड़ा-सा अर्क गुलाब या अर्क केवड़ा भी मिला दिया जाय, तो क्या कहना ! सफ़ेद चन्दन कड़वा होता है; अतः वह बहुत थोड़ा लेना चाहिये। हमने स्वयं इस तरह भाँग पीकर अनेक लाभ उठाये और बरसों भाँग पीकर भी, रत्ती दो रत्तीसे ज़ियादा नहीं बढ़ायी। एक बार, बलूचिस्तानमें, जहाँ बर्फ पड़ती है, सर्दीके मारे आदमीका करमकल्याण हो जाता है, हमने “विजया पाक" बनाकर खाया था। वहाँ कोई भी जाड़ेमें भंग पी नहीं सकता। पानीके बदले लोग चाय पीते हैं । हाँ, उस “विजया पाक' ने हमारा बल-पुरुषार्थ खूब बढ़ाया। सच पूछो तो जिन्दगीका मज़ा दिखाया । विजया पाक या भाँगके साथ तैयार होनेवाले अनेकों अमृत-समान नुसखे हमने "चिकित्साचन्द्रोदय" चौथे भागमें लिखे हैं।
विधिपूर्वक और युक्ति के साथ, उचित मात्रामें खाया हुआ विष जिस तरह अमृतका काम करता है, भाँगको भी वैसी ही समझिये । जो लोग बेकायदे, गाय-भैंसकी तरह इसे चरते या खाते हैं, वे निश्चय ही नाना प्रकारके रोगोंके पञ्जोंमें फँसते और अनेक तरहके दिल-दिमाग़-सम्बन्धी उन्मादादि रोगोंके शिकार होकर बुरी मौत मरते हैं। इसके बहुत ही जियादा खाने-पीनेसे सिरमें चक्कर आते हैं, जी मिचलाता है, कलेजा धड़कता है, जमीनआस्मान चलते दीखते हैं, कंठ सूखता है, अति निद्रा आती है, होशहवास नहीं रहते, मनुष्य बेढंगी बकबाद करता और बेहोश हो जाता है। अगर जल्दी ही उचित चिकित्सा नहीं होती, तो उन्माद रोग हो जाता है। अतः समझदार इसे न लगावें और जो लगावें ही तो अल्प मात्रामें सेवन करके जिन्दगीका मज़ा उठावें । चूँ कि भाँग गरम और रूखी है, अतः इसके सेवन करनेवालोंको घी, दूध, मलाई,
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