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चिकित्सा-चन्द्रोदय । पीते हैं। यह तीसरे दर्जेका गरम और रूखा होता है । यह बेहोशी लाता और दिमागको नुकसान करता है। इसके दर्प-नाशक घी और खटाई हैं। गाँझा यों तो सर्वाङ्गको, पर विशेषकर मस्तिष्कसम्बन्धी अवयवोंको ढीले और सुस्त करता है। यह अत्यन्त रूखा है। शिथिलता करने और सुन्न करनेमें तो यह अफ़ीमका भी बाबा है । ___ चरसको फारसीमें "शबनम बंग" कहते है। शबनम ओसको
और बंग भाँगको कहते हैं । भाँगकी पत्तियोंपर ओसके जमनेसे यह बनता है, इसीसे इसे 'शबनम बंग" कहते हैं। यह गरम और रूखा है। दिल और दिमाराको खराब कर देता है। इसका दर्पनाशक “गायका दूध' है; यानी गायका दूध पीनेसे इसके विकार नाश हो जाते हैं। यह भी नशा लानेवाला, रुकावट करनेवाला, सूजनको हटानेवाला, शरीरमें रूखापन करनेवाला और आँखोंकी रोशनीको नाश करनेवाला है.। . "तिब्बे अकबरी"में लिखा है, भाँगके बहुत ही ज़ियादा खानेपीनेसे जीभमें ढीलापन, श्वासमें तंगी, बुद्धिहीनता, बकवाद और खुजली होती है। ___नोट-भंगके बहुत खानेसे उपरोक्त विकार हों, तो फौरन कय करायो तथा दूध और अञ्जीरका काढ़ा पिलानो अथवा बादामका तेल और मक्खन खिलाओ। शराब पिलाना भी अच्छा कहा है। बहुत ही तकलीफ हो, तो शीतल तिरियांक यानी शीतल अगद सेवन करायो। . यहाँ तक हमने भांग, गाँजे और चरसके सम्बन्धमें जो लिखा है, वह अनेक पुस्तकोंका मसाला है। अब हम कुछ अपने अनुभवसे भी लिखते हैं:• पहलेकी बात तो हम नहीं जानते; पर आजकल भारतमें भाँग, गाँजे और चरसका इस्तेमाल बहुत बढ़ा हुआ है। भागको ऊँचे-नीचे सभी दर्जेके लोग पीते हैं। जो कभी नहीं पीते, वे भी होलीके त्यौहारपर स्वयं घोट या घुटवाकर पीते हैं। जो इसका
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