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विशुद्ध ॥ सो वरस नरकनो आजखो. दरी करे ज्ञानी बुद्ध ॥ ८॥ नित्य करे नवकारसी, ते नर नरक नही जाय ॥ न रहे पाप वळी पाछला, निर्मल होवेजी काय ॥९॥
॥ ढाल ॥ २ ॥ विमलासर तिलो ॥ ए देशी ॥
सुण गौतम पोरिसी कियां, महामोटो फल होय ॥ भावशुं जे पोरिसी करे, दुर्गति छेदे सोय ॥ ॥ सु० ॥ १॥ नरक मांहे जीव नारकी, वरसां एक हजार ॥ करम खपावे नरकमां, करतां बहुत पुकार ॥२॥ दुर्गति मांहे नारकी, दशहजार परिमाण ॥ ननरकनो आयु खिण एकमें, साढ पोरसी करेहाण ॥३॥ पुरिमढ करतां जीवडा, नरके ते नहीं जाय ॥ लाख वरस करमना कटे, पुरमढ करत खपाय ॥ ४ ॥ लाख वरस दस नारकी, पामे दुःख अनंत ॥ इतरां करम एकासणे, दुरि करे मनखंत ॥५॥ एक कोडि वरसां लगे, करम खपावे जीव ॥ निवि करतां भावशुं, दुर्गति हणे सदैव ॥६॥दस कोडी जीव नरकमें, जीतरो करे कर्म दूर ॥ तितरो अकलठाणहि, करेसही चकचूर ॥७॥ दत्तिकरंता प्राणीया, सो कोमे परिमाण ॥
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