SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૮૪ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधर गौतम ति समे, पुछे श्री जिनराय ॥ दसपचखाण कीसां कहां, कीहां कवण फल थाय ॥२॥ ॥ ढाल ॥ १ ॥ सीमंधरकर || श्री जिनवर इम उपदीशे, सांभल गौतम स्वाम ॥ दश पचखाण कीधां थकां, लहीये अविचल ठाम ॥ १ ॥ श्री नवकोरशी बीजी पोरिसी, साढ पोरिंसी पुरिमं ॥ एकाए निवि कही, एकलठाण दिव ॥ २ ॥ दत्ति आबेल उपवास सहि, एहज दश पचखाण 11 11 एहना फल सुण गौतमा, जुजुंआं करूं वखाण || ३ || रत्नप्रभा शर्कराप्रजा, वालुक त्रीजीय जाण ॥ पंकप्रभा धूमप्रभा, तमप्रभा तमतमा ठाम ॥ ४ ॥ नरक साते रहिसही, करम कठन कर जोर ॥ जीव करम वश करे जूदा, उपजे तिणहीज ठोर ॥५॥ छेदन भेदन ताडना, भुख तृषा वली त्रास ॥ रोम रोम पीडा करे, परमाधामीना त्रास ॥ ६ ॥ रात दिवस क्षेत्र वेदना, तिल भर नहीं तिहां सुख ॥ किधां करम तिहां भोगवे, पामे जीव बहु दुख ||७|| एक दिननी नवकारसी, जे करे भाव For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy