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गणधर गौतम ति समे, पुछे श्री जिनराय ॥ दसपचखाण कीसां कहां, कीहां कवण फल थाय ॥२॥
॥ ढाल ॥ १ ॥ सीमंधरकर || श्री जिनवर इम उपदीशे, सांभल गौतम स्वाम ॥ दश पचखाण कीधां थकां, लहीये अविचल ठाम ॥ १ ॥ श्री नवकोरशी बीजी पोरिसी, साढ पोरिंसी पुरिमं ॥ एकाए निवि कही, एकलठाण दिव ॥ २ ॥ दत्ति आबेल उपवास सहि, एहज दश पचखाण 11 11 एहना फल सुण गौतमा, जुजुंआं करूं वखाण || ३ || रत्नप्रभा शर्कराप्रजा, वालुक त्रीजीय जाण ॥ पंकप्रभा धूमप्रभा, तमप्रभा तमतमा ठाम ॥ ४ ॥ नरक साते रहिसही, करम कठन कर जोर ॥ जीव करम वश करे जूदा, उपजे तिणहीज ठोर ॥५॥ छेदन भेदन ताडना, भुख तृषा वली त्रास ॥ रोम रोम पीडा करे, परमाधामीना त्रास ॥ ६ ॥ रात दिवस क्षेत्र वेदना, तिल भर नहीं तिहां सुख ॥ किधां करम तिहां भोगवे, पामे जीव बहु दुख ||७|| एक दिननी नवकारसी, जे करे भाव
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