SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar इतरा वरस दुर्गति तणां, छेदे चतुर सुजाण ॥८॥ आं. बिलनो फल बहु कह्यो, कोडी दस हजार ॥ करम खपावे इण परे, भावे आंबिल कर ॥ ९॥ कोमी हजार दस वरस सही, दुख सहे नरक मझार ॥ उपवास करे एक नावसुं, पामे मुक्ति दुवार ॥ १०॥ ॥ ढाल ॥ ३ ॥ केइक वर मागे सिता भणी ॥ ए देशी ॥ ___ लाख कोडी वरसां लगे, नरके करता बहु रीवरे ॥ सुणी गौतम गणधर उट्ठ तप करतां थकां, सही नरक निवारे जीवरे ॥१॥ नरक विषे कोडी लाखही, जीव लहे तिहां अति दुखरे ॥ सुण ॥ ते दुख अट्टम तप हुंती, दूरकरे पामे सुखरे ॥ सु० ॥ २ ॥ बेदन नेदन नारकी, कोडा कोमी वरसाइरे ॥ सु०॥ दुर्गति कर्मने परहरे, दशमें एटलो फल होइरे ॥ सु० ॥३॥ नित्य फासु जल पीवतां, कोडा कोडी वरसनां पापरे ॥सु० ॥ दूर करे खीण एकमां, जीव निश्चये निरधाररे ॥ सु० ॥ ४ ॥ एतो वली अविशेष फल कह्यो, पांच करतां उपवासरे ।। सु० ॥ तेतो पामे झान पांच भला, करंतां त्रिभुवन उज्जासरे ॥ सु०॥५॥ चौदश For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy