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Achar
इतरा वरस दुर्गति तणां, छेदे चतुर सुजाण ॥८॥ आं. बिलनो फल बहु कह्यो, कोडी दस हजार ॥ करम खपावे इण परे, भावे आंबिल कर ॥ ९॥ कोमी हजार दस वरस सही, दुख सहे नरक मझार ॥ उपवास करे एक नावसुं, पामे मुक्ति दुवार ॥ १०॥
॥ ढाल ॥ ३ ॥ केइक वर मागे सिता भणी ॥ ए देशी ॥ ___ लाख कोडी वरसां लगे, नरके करता बहु रीवरे ॥ सुणी गौतम गणधर उट्ठ तप करतां थकां, सही नरक निवारे जीवरे ॥१॥ नरक विषे कोडी लाखही, जीव लहे तिहां अति दुखरे ॥ सुण ॥ ते दुख अट्टम तप हुंती, दूरकरे पामे सुखरे ॥ सु० ॥ २ ॥ बेदन नेदन नारकी, कोडा कोमी वरसाइरे ॥ सु०॥ दुर्गति कर्मने परहरे, दशमें एटलो फल होइरे ॥ सु० ॥३॥ नित्य फासु जल पीवतां, कोडा कोडी वरसनां पापरे ॥सु० ॥ दूर करे खीण एकमां, जीव निश्चये निरधाररे ॥ सु० ॥ ४ ॥ एतो वली अविशेष फल कह्यो, पांच करतां उपवासरे ।। सु० ॥ तेतो पामे झान पांच भला, करंतां त्रिभुवन उज्जासरे ॥ सु०॥५॥ चौदश
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