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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विद्या नामनो, चौरासी हो मंडप प्रासादके ॥ त्रण कोश उंचो कनकमें, ध्वज कलशे हो करे मेरुसुंवादके ॥श्री० ॥ १२ ॥ वान प्रमाणे लंछने, जिन सरखीहो तीहां प्रतिमा कीधके ॥ दोयचार आठ दस नणी, ऋषभादिक हो पूखे परसिद्धके॥श्री०॥ १३ ॥ कंचन मणी कमले ठवि, प्रतिमानी हो आणी नासिका जोडके ॥ देव वंदे रंग मंडपे, नीलां तोरण हो करी कोरणी कोडके ॥श्री०॥१४॥ बंधव बेन माता तणी, मोटी मुरतीहो मणी रतने भरायके ॥ मरुदेवा मयगल चढी, सेवा करतीहो निज मुरतीनी पायके ॥ ॥श्री० ॥१५॥ पाडिहारज छत्र चामरा, जक्षादिक हो कीधा अनिमेषके ॥ गोमुख चतुर चक्केसरी, गढवाडीहो कुंड वाव्य विशेष के ॥ श्री० ॥ १६ ॥ प्रतिष्ठा प्रतिमा तणी, करावेहो राजा मुनिवर हाथके ॥ पूजा स्नात्र प्रभावना, संग भक्ति हो खरची खरी हाथके ॥श्री० ॥ १७ ॥ पडते आरे पापीया, मत पाडोहो कोई वीरु वाटके ॥ एक एक जोयण आंतरे, इम चितवीहो करे पावडियां आठके ॥ श्री० ॥१८॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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