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Achar
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॥ श्री सिद्धचक्रजीतुं स्तवन ॥ ॥ वीर जिनेश्वर साहेब मोरा ॥ ए देशी ॥
सकल कुशल कमलानुं मंदिर, सुंदर महीमारे जास ॥ नवपदमां नव निधिना दाता, सिक अनेकमां वासरे ॥ भविका सिद्ध चक्र सुखकारी ॥ तुमे आराधो नरनारीरे लविका० ॥ प्रथम पदे अरिहंत आ. राधो, स्फटीक रत्न सम वान ॥ पद्म एक मणिनी परे राता, बीजे सिद्धनुं ध्यानरे ॥ भविका० ॥२॥ त्रीजे आचारज अनूसरीए, कंचन कांति अनोष ॥ पद चोथे उवझायने प्रणमो, इंद्र निल सम वानरे ॥ भविका० ॥ ३॥ सर्व साधु पद पंचमे प्रणमो, श्याम वरण सुखकार ॥ छठे दरिसण ज्ञान सातमे, आठमे चारित्र साररे ॥ भविका० ॥ ४ ॥ तपनु आराधन पद नवमे, चारए उज्वल वरणा ॥ इह लोगोतमे एहीज मंगल, करवा एहनु शरणरे ॥ भविका०॥ ॥५॥ आसो चैत्री अट्टाश्मांहि, नव आंबिल नव ओळी ॥ सिद्धचक्रजीनी पूजा करतां ॥ दुःख सबि नाखो ढोळीरे ॥ भविका० ॥ ६ ॥ सिद्धचक्र पूजाथी
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