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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ए, त्रिविधिशुं कीजे ॥ साधु मुख सिद्धात कांत, वचनामृत रस पीजे ॥ १॥ नव व्याख्याने कल्पसूत्र, विधि पूर्वक सुणीए ॥ पूजा नव प्रभावना, निज पातिक हीए ॥५॥ प्रथम वीर चरित्र बीज, पार्श्व. चरित्र अंकुर ॥ नेमि चरित्र प्रबंध खंध, सुख संपति पूर ॥ ६॥ ऋषभ चरित्र पवित्र पत्र, शास्वा समुदाय ॥ स्थविरावलि बहु कुसुम पूर, सरिखो कहेवाय ॥ ॥७॥ समाचारी शुद्धताए, वर गंध वखाणो ॥ शिव. सुख प्राप्ति फल सही, सुरतरु समजाणो ॥ ८॥ चौद पूर्वधर श्री भद्रबाहु, जिणे कल्प उद्धरियो । नवमा पूर्वथी युग प्रधान, आगम जल दरियो ॥ ९ ॥ सात वार श्री कल्पसूत्र, जे सुणे भवि प्राणी ॥ गौतमने कहे वीर जिन, परणे शिव राणी ॥ १० ॥ कालिक सूरी कारणे ऐ, पजुसण कीयां ॥ भादरवा शुदि चोथमां, निज कारज सिध्यां ॥११॥ पंचमी करणी चोथमां, जिनवर वचन प्रमाणे ॥ वीर थकी नवसे एंशी, वरसे ते आणे ॥१२|| श्री लक्ष्मी सागर सुरीश्वरूए, प्रमोद सागर सुखकार ॥ पर्व पजुसण पालता, होवे जय जयकार ॥ १३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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