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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सघळी, संपदा निज घेर आवे ॥ दुष्ट कुष्ट प्रमुख जे रोगा, ते पण दुरे जायरे ॥ भविका० ॥ ७॥ पृथ्वी निरुपम नयरी उज्जेण, दोय पुत्री तस सारी॥ सुरसुंदरी मिथ्यात्विने पेखी, मयणा जिन मत धारीरे ॥ ॥ भविका० ॥ ८॥ सुरसुंदरी कहे सवि सुख अमने, छ निज तात पसाय ॥ मयणा कहे ए फोगट कुसुमत, सुख दुःख कर्म पसायरे ॥ भविका० ॥९॥ तव वचन नृप कोप्यो एह, आव्यो उंबर इण समे॥ सातसें कोढिनो ते अधिपति, तेणे मागी कन्यायरे ॥ ॥ भविका० । १० नृप कहे मेणा तुम कमें, आण्यो ए वर रसाल ॥ तव मयणा मन धीरज धरीने, कंठे ठावे वरमालरे ॥ भविका० ॥ ११ ॥ शुभवेला परणी दोय पहोंच्या, श्रीजिनवर प्रासाद ॥ ऋषभदेव पूजा गुरूपासे, आव्या धरि उवासरे ॥ भविका० ॥ १२ ॥ प्रणमी मयणा कहे गुरुने, हवे भांखो कोई उपाय ॥ जेहथी तुम श्रावकनी काया, सर्वनीरोगी थायरे ॥ ॥ भविका० ॥ १३ ॥ गुरु कहे अमने मंत्र जंत्रादिक, कहेवा नहि आचार ॥ योग्य पणुं जाणी अमे कहेशुं, For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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