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करिये शुद्ध आचार || देव वंदो त्रिहु कालना, पोहचाडे भवपार || ८ || नमो नाएरस गुणणो गुणो, नोकारवाली वीस || सामायक सुधे मने, धरीये शियल जगी ||२|| इणीपरे पंचमी पावशे, भविजन प्राणी जेह || अजरामर सुख पानशे, हंस कहे गुण गेह ॥ १० ॥ इति ॥
|| अष्टमीतुं चैत्यवंदन ॥
॥ शासन नायक समरीयें, वर्द्धमान जिनचंद ॥ अष्टमी तिथिनो फल कहु, ध्यावो मन आणंद ॥ ||१|| ऋषभ जनम दिक्षा प्रभु, सुविधि चवन जिणंद ॥ अजित सुमति नमिनाथजी, जनम्या तिथि आनंद ||२|| संजवने सुपासजी, चवन कल्कांणक जाण ॥ अभिनंदन श्री पास प्रभु, पाम्या पद निर्वाण ॥ ॥ ३ ॥ सुनिसुव्रत अष्टमि तिथे, जनम्या जिनवर स्थाम ॥ इत्यादिक द्वादश कला, कल्याणक सुभ काम ॥ ४ ॥ पर्व तिथे पोसह करो, आणी मन एक तार ॥ अष्ट कर्म मद मोडवा, सेवो ए तिथी सार ॥ ५ ॥ सुजश राजानी परे, सेवो धरी बहु प्यार ॥
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