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आराधतां, शिवपंथ साधन हार ॥ ६ ॥ प्रह उठीने नित नमोए, आणी प्रेम अपार || हंसविजय प्रभु नामथी, पामे सुख श्रीकार ॥७॥ इति ॥ || पंचमीनुं चैत्यवंदन ॥
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॥ सकल सुरासुर साहिबो, नमिये जिनवरनेम || पंचमी तिथि जग परवडो पालो जन बहु प्रेम ॥ १ ॥ || जिन कल्याणक ए तिथे, संभव केवल ज्ञान ॥ सुविधि जिनेश्वर जनमिया, सेवो थइ सावधान ॥२॥ चवन चंद्रप्रभ जाणीये, अजित सुमति अनंत ॥ पंचमी दिन मोक्षे गया, भेटो भविजन संत ॥ ३ ॥ कुंथु जिन संजम ग्रह्यो, पंचमी गति जिन धर्म ॥ नेमी जनम वखाणीयें, पंचमी तिथि जगचर्म ॥ ४ ॥ पंचमीना आराधने, पामे पंचम ज्ञान ॥ गुणमंजरी वरदत्त जे, पोहता मोक्ष सुथांन ॥ ५ ॥ कार्तिक सुदि पंचमी थकी, तप मांडी जे खास ॥ पंच वरस आ राधीये, उपर वली पंच मास ॥ ६ ॥ दश खेत्रे नेटजिननां, पंचमी दिन कल्याण || एह तिथे आराधतां पामे शिवपद ठाण || ७ || पडिकमणां दोय टंकना,
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