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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिद्धि सिद्धि घर पामस्यो, सेवो सहु नरनार ॥ ६॥ शियल संतोषे धारीयें, तजीये झुठ अभिमान ॥ मन वच काया सेवतां, पामे अमर विमान ॥ ७॥ इणीपरे अष्टमी तिथि, पामे भवनो पार ॥ हंस कहे प्रभु सेवतां नित्य पामे जयकार ॥ ८ ॥ ॥ श्री मौन एकादशीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ नेमी जिनेश्वर गुणनिलो ब्रह्मचारी शिरदार ॥ सहस पुरुष शुं आदरे. दिक्षा जिनवर सार ॥ १ ॥ पंचावन में दिन लघु, निर्मळ केवळनाण ॥ भविक जीव पडिबोहतां, विचरे महियल जाण ॥ २ ॥ विहार करंता आविया, बावीशमां जिनराय ॥ द्वारिका नगरी समो सरया, समवसरण सिंहां थाय ॥ ३॥ बार पर्खदा जिहां मली, भांखे जिनवर धर्म ॥ सर्व पर्व तिथी साचवो, जिम पामो शिव शर्म ॥ ४ ॥ तत्र पुछे हरी नेमिने, दाखो दिन मुज एक ॥। थोको धर्म कर्या थकी शुभ फल पामुं अनेक ॥ ५ ॥ नेमि कहे केशव सुपो, वर्ष दिवसमा जोय ॥ मृगशिर सुदी एकादशी, ए सम अवर न कोय ॥ ६ ॥ एणे दिन For Private And Personal Use Only
SR No.020137
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurvacharya
PublisherMaster Umedchand Raichand
Publication Year1932
Total Pages539
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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